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भीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥४९६॥
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४ स्थान काध्ययने उद्देशः३ आहरण
भेदाः सू० ३३८
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आ दृष्टांतनी सदृशता आ प्रमाणे के-कोईके बधुंय को छते पण में आ प्रथम सांभळेलु छ एवी रीते असत्य वचन बोलनारना निग्रह माटे " तारा पिताए मारा पिता पासथी लाख द्रव्य लीधेल छे" आ प्रकारे वे तरफथी बंधन समान असत्य वचननु ज स्थापनपणुं होबाथी आ दृष्टांतनी प्रतिनिभता-समानपणुं छे. युक्तिमात्ररूप आ प्रतिनिभर्नु पण अथेने जणावनार होबाथी ज्ञातपर्यु छ अथवा यथारूढ ज आ ज्ञात छे ते कहे छे. अहिं आ प्रयोग छ-मने कोई पण श्लोक विगेरे अश्रुतपूर्व नथी अर्थात् बधुं य सांभळेलं छे. आवा प्रकारना अभिमानरूप धनवाळाने अमे उत्तर आपीए छीए के-तने अश्रुतपूर्व-पूर्व नहिं सांभ. ळेल वचन छ. तारो पिता, मारा पितानो संपूर्ण एक लाख द्रव्यनो देवादार छे. 'हेउ' त्ति जे उपन्यास उपनयमा प्रश्ननो हेतु उत्तररूप कहेवाय छ ते ४ हेतु. कोईकवडे कोईक प्रश्न पूछायो-शुं तारावडे यव खरीदाय छ ? ते कहे छ के-फोकट नथी मळता माटे. वळी शा कारणथी तुं ब्रह्मचर्यादि अनुष्ठान करे छ ? उत्तर-तपस्या नहिं करनाराओने नरकादिने विषे बहु भारे वेदना होय छे माटे अनुष्ठान करुं छं. आ पण युक्तिमात्र छ परंतु अर्थने जणावनार होवाथी ज्ञानरूपे कहेल छ अथवा यथारूढ ज्ञात ज छे. ते कहे छ-आनो प्रयोग आ प्रमाणे-शा कारणथी तारावडे प्रव्रज्या-क्रिया कराय छ ? एम काईकवडे पूछायो थको साधु कहे छे के-प्रव्रज्या सिवाय मोक्ष थाय नहिं माटे क्रिया करुं छं. एनुं समर्थन करवा माटे ज साधु ते प्रत्ये कहे छ-अरे यवन ग्रहण करनार ! शामाटे तारावडे यत्र खरीदाय छ ? ते कहे छ के-मफत नथी मळता माटे. साधुओनो आ अभिप्राय छ-जेम फोकट मळयाना अभावथी तं यवोने खरीदे छ एवी रीते हैं पण प्रव्रज्या विना मोक्षनो लाभ न थवाथी संयम क्रिया करूं छु. अहिं खरीदवामां मफत यवना अलाभरूप हेतुने दृष्टांतरूपे आपेल होवाथी हेतुउपन्यास उपनय ज्ञातता छे. अहिं
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