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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie भीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥४९६॥ Cxxxxxxxx ४ स्थान काध्ययने उद्देशः३ आहरण भेदाः सू० ३३८ ४ Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx आ दृष्टांतनी सदृशता आ प्रमाणे के-कोईके बधुंय को छते पण में आ प्रथम सांभळेलु छ एवी रीते असत्य वचन बोलनारना निग्रह माटे " तारा पिताए मारा पिता पासथी लाख द्रव्य लीधेल छे" आ प्रकारे वे तरफथी बंधन समान असत्य वचननु ज स्थापनपणुं होबाथी आ दृष्टांतनी प्रतिनिभता-समानपणुं छे. युक्तिमात्ररूप आ प्रतिनिभर्नु पण अथेने जणावनार होबाथी ज्ञातपर्यु छ अथवा यथारूढ ज आ ज्ञात छे ते कहे छे. अहिं आ प्रयोग छ-मने कोई पण श्लोक विगेरे अश्रुतपूर्व नथी अर्थात् बधुं य सांभळेलं छे. आवा प्रकारना अभिमानरूप धनवाळाने अमे उत्तर आपीए छीए के-तने अश्रुतपूर्व-पूर्व नहिं सांभ. ळेल वचन छ. तारो पिता, मारा पितानो संपूर्ण एक लाख द्रव्यनो देवादार छे. 'हेउ' त्ति जे उपन्यास उपनयमा प्रश्ननो हेतु उत्तररूप कहेवाय छ ते ४ हेतु. कोईकवडे कोईक प्रश्न पूछायो-शुं तारावडे यव खरीदाय छ ? ते कहे छ के-फोकट नथी मळता माटे. वळी शा कारणथी तुं ब्रह्मचर्यादि अनुष्ठान करे छ ? उत्तर-तपस्या नहिं करनाराओने नरकादिने विषे बहु भारे वेदना होय छे माटे अनुष्ठान करुं छं. आ पण युक्तिमात्र छ परंतु अर्थने जणावनार होवाथी ज्ञानरूपे कहेल छ अथवा यथारूढ ज्ञात ज छे. ते कहे छ-आनो प्रयोग आ प्रमाणे-शा कारणथी तारावडे प्रव्रज्या-क्रिया कराय छ ? एम काईकवडे पूछायो थको साधु कहे छे के-प्रव्रज्या सिवाय मोक्ष थाय नहिं माटे क्रिया करुं छं. एनुं समर्थन करवा माटे ज साधु ते प्रत्ये कहे छ-अरे यवन ग्रहण करनार ! शामाटे तारावडे यत्र खरीदाय छ ? ते कहे छ के-मफत नथी मळता माटे. साधुओनो आ अभिप्राय छ-जेम फोकट मळयाना अभावथी तं यवोने खरीदे छ एवी रीते हैं पण प्रव्रज्या विना मोक्षनो लाभ न थवाथी संयम क्रिया करूं छु. अहिं खरीदवामां मफत यवना अलाभरूप हेतुने दृष्टांतरूपे आपेल होवाथी हेतुउपन्यास उपनय ज्ञातता छे. अहिं x॥४९६॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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