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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org छते तेने उत्तर आपे छे जीव मूर्त्तपणाथी कर्मनी माफक अनित्य ज थाओ. ' तयन्नवत्थुए ' ति० अन्यवडे स्थपायेल वस्तुथी उत्तरभूत अन्य वस्तु छे जे उपन्यासउपनयमां ते २ तदन्यवस्तुक. जेम जलमां पडेलां पत्रो जलचर जीवो थाय छे एम को छते, एनुं निरसन करवाने माटे पतनथी अन्य उत्तर कहे छे-जे पत्रोने पडावीने खाय छे अथवा लई जाय छे ते पांदडांनुं शुं थशे ? कया रूपमा आवशे ? कई नहि थाय. आ पण जणावनारपणाए ज्ञात कहेल छे. अथवा आ ज्ञात यथारूढ छे. ते कहे छे-जल अने स्थलमां पडेलां पत्रो मनुष्य विगेरेथी आश्रितपत्रोनी माफक जलचरादि जीवोरूपे संभवता नथी. अहिं आ अभिप्राय छे के जेम जलादिवडे आश्रित थवाथी पत्रो जलचरादिपणे उत्पन्न थाय छे तेम मनुष्यादिवडे आश्रित थवाथी मनुष्यादिथी उत्पन्न थयेल यूका ( जू) आदि स्वरूपे उत्पन्न थाओ; कारण के आश्रितपणानी समानता छे परंतु ते पत्रो तेम ते स्वरूपे स्वीकारेल नथी माटे जल विगेरेमां पडेलां पत्रोनुं पण जलचरपणुं विगेरेनो असंभव छे. 'पडिनिभे ' ति० जे उपन्यासउपनयमां वादीए स्थापेल वस्तुनी समान वस्तु उत्तर देवा माटे स्थापन कराय छे ते ३ प्रतिनिभ. जेम कोईपण प्रतिज्ञा करे छे के जे पुरुष मने अपूर्व वस्तु संभळावे तेने एक लाखना मूल्यवाळो कटोरो आपुं. तेने अपूर्व संभाव्यं तो पण ते अपूर्व नथी एम स्वीकारे छे. त्यारबाद एक सिद्धपुत्रे कधुं के— तुझ पिया मज्झपिउणो, धारेइ अणूणयं सयसहस्सं । जइ सुयपुढंव दिज्जउ, न सुयं खोरयं देहि ॥ १९४ तारा पिताए मारा पिता पासेथी संपूर्ण एक लाख द्रव्य लीघेलुं छे, ते जो तें पूर्व सांभळ्युं होय तो लाख द्रव्य आप, अने न सांभळ्युं होय तो आ अपूर्व छे माटे कटोरो आप. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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