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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx कहे ले-आकाशनी माफक आत्मा अभोक्ता पण थशे अने अभोक्तृत्व ( अभोक्तापणुं ) तमने पण इष्ट नथी. बळी प्राणीनं अंग होवाथी ओदन(भात) विगेरेनी माफक xमांसद् भक्षण दोष रहित छे. अहिं अन्य कहे छे के-आदन विगेरेनी माफक स्व-पोताना पुत्र विगेरेनुं मांसभक्षण पण निर्दोष थशे. वळी ऋषभदेव विगेरेनी जेम संग रहित+ मुनिओ वस्त्र अने पात्र विगेरेना संग्रहने करता नथी. अहिं कहे छे-कमंडल विगेरे पण तेओ वस्त्रादिनी माफक ग्रहण करता नथी. शामाटे तुं कार्य करे छ ? धननी इच्छावाळो छु माटे. अहिं पहेलं आहरण नामनुं ज्ञात संपूर्ण साधर्म्यरूप छे, बाजुं तद्देशाहरण-देशथी साधर्म्यरूप छ, त्रीजु तद्दोषाहरण (दोष सहित) छे अने चोथु उपन्यासोपनय प्रतिवादीना उत्तररूप छ. आ प्रमाणे चार प्रकारना ज्ञातना स्वरूपनी विभाग छे. अहिं देशथी संवाद गाथा जणावे छचरियं च कप्पियं वा. दुविहं तत्तो चउब्विहेक्केकं । आहरणे तसे, तद्दोसे चेवुवन्नासा ॥ १८२॥ उदाहरण के प्रकारे छे-चरित्र अने कल्पित. ते दरेकना चार चार भेद छ-१ आहरण, २ तदेश, ३ तदोष अने ४ उपन्यासोपनय. अवाये'-अपाय-अनर्थ, ते जे दृष्टांतमा द्रव्यादिने विषे कहेवाय छ, ते आ प्रमाणे-आ द्रव्यादि विशेषाने विषे विवक्षित द्रव्यादि विशेषोनी जेम, अपाय-अनर्थ छे अथवा हेयता (त्यागवू) जेमां कहेवाय छे ते अपाय नामर्नु आहरण छे, ते x निर्दय एवा पशुवधादिने करनार वाममार्गी वगेरेनो मत छे. + आ दिगंबरनो मत छे. तेओ वस्त्रपात्रादि उपकरणने मानता नथा. XXX. For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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