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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भीस्थानाङ्गसत्र सानुवाद ॥ ४८८॥ ४ स्थानकाध्ययने उद्देशः३ आहरण सू० ३३८ KXxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxy द्रव्यादि भेदवडे चार प्रकारे छे. तेमां द्रव्यथी अथवा द्रव्यने विषे अपाय अथवा तेनु कारण होवाथी द्रव्य ज अपाय ते द्रव्यअपाय, एनी हेयतानो साधक अथवा अपाय-अनर्थनो साधक आहरण पण तेमज कहेवाय छे. तेनो प्रयोग आप्रमाणे-द्रव्य अपाय छोडवा योग्य छ अथवा द्रव्यमा अनर्थ बत छे. आ संबंधमां दृष्टांत जणावे छे-कोईक वे वणिक भाईओ परदेशमा जई, धन मेळवीने पाछा वळतां मार्गमां धननी बांसळीना लोभथी परस्परने माखानी इच्छाथी क्रमशः पोताना गाम पासे आव्या त्यारे विचायु के-आ द्रव्य अनर्थनुं कारण छे तेथी पश्चात्तापपूर्वक द्रहमां बांसळी फेंकी दीधी एटले मत्स्ये गळी, ते मत्स्यने धीवरे पकड्यो. बाद ते धीवर पासेथी ते बन्ने भाईओनी बहनो मत्स्यने खरीदी लावी. पछी तेने शस्त्रथी विदारतां तेमांथी वांसळी नीकळी. त्यारे तेनी माताए पूछयु के-आ शुंछ ? तेणीए द्रव्यना लोभथी पोतानी माताने शखबडे मारी नाखी. ते अनथेने जोईने बन्ने भाईओए वैराग्यथी *दीक्षा लीधी. अपायनो परिहार, द्रव्यना त्यागथी-प्रव्रज्यावडे थाय छे. देशवडे उपनयनी विवक्षा न करवाथी आनी आहरणता क्षेत्रथी अथवा क्षेत्रमा अथवा क्षेत्र ज अपाय ते क्षेत्र अपाय. शेष स्वरूप पूर्वनी माफक छे. आगळ पण एमज जाणवू. तेनो प्रयोग आ प्रमाणे - अपायवाल्लु क्षेत्र वर्जq. जरासंध नामना प्रतिवासुदेवना हेतुथी संभावित अनथे ज्यां छे एवी मथुरानगरीने जेम दशार्हचक्र-यादवो छोडता हवा, अथवा दुश्मनना क्षेत्रमा सर्प सहित घरनी माफक अपाय संभवे छे. अपाय सहित-अनर्थवाळा काळना त्यागमां यत्न करे ते काळअपाय, ते आ प्रमाणे-'बार वर्ष सुधीमां द्वैपायन द्वारिकाने बाळशे' एम श्री नेमिनाथ प्रभुना वचन सांभळीने बार वर्षलक्षण अपाय सहित समयने छोडवानी इच्छाथी उत्तरापथने * आ कथा मुनिपतिचरित्रमा सुस्थित आचार्यना संबंधमां छे, त्यांथो जाणो लेवी. Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx ॥४८८॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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