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बीस्थानाङ्गसूत्र सानुबाद ॥४८७ ॥
४ स्थानकाध्ययने उद्देशः३ आहरण
भेदाः सू० ३३८
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उपचार करवाथी तदोषाहरण छे. अहिं प्राकृत शैलीथी आहरण शब्दनो पूर्व निपात करवाथी 'सूत्रमा' आहरणतदोष प्रयोग थेयेल है अथवा 'तस्य' आहरण संबंधी दोष छ जेमां ते आहरणतदोष, बीजु तेमज जाणवू. अहिं भावार्थ आ प्रमाणे छे-साध्यनुं विकलपणुं ( अयोग्यत्व) विगेरे दोपथी जे दुष्ट छे ते तदोषाहरण. जेम घटनी माफक अमूर्तपणाथी शब्द नित्य छे. अहिं साध्य अने साधननी विकलता नामनो दृष्टांतदोष छे. वली जे असभ्य विगरे वचनरूप छे ते पण तदोषाहरण छे. जेम हुं सर्वथा असत्यनो परिहार करूं छु-गुरुना मस्तकने कापवानी माफक, अथवा साध्यनी सिद्धिने करतो थको पण अन्य दोषने लावे छे ते पण तद्दोषाहरण. जेम के-लौकिक मुनिओ सत्य धर्मने इच्छे छे पण-"सो कूवाथी एक वावडी सारी, सो वावडीथी एक यज्ञ श्रेष्ठ, सो यज्ञथी एक पुत्र श्रेष्ठ अने सो पुत्रथी एक सत्य श्रेष्ठ छे" आ प्रमाणे नारदनी माफक बोले छे. आवा वचनवडे श्रोताने प्रायः संसारना कारणभूत पुत्र, यज्ञ विगैरेने विषे धर्मनी प्रतीति बतावेली छे तेथी आहरणतदोषता छे. बळी जेम कोई पण बुद्धिमान पुरुष कहे के-सन्निवेश रचना विशेषवाल्लं होवाथी घटनी माफक आ जगत करायेलुं छे अने तेना कर्ता ईश्वर छ. उक्त वाक्यवडे ज ते विवक्षित ईश्वर बुद्धिमान कुंभार तुल्य अनीश्वर पुरुषविशेष सिद्ध थाय छे. ४ वादीए स्वसम्मत अर्थना साधन माटे वस्तुनो उपन्यास (स्थापन ) कर्ये छते तेना खंडन माटे प्रतिवादीद्वारा जे विरुद्ध अर्थनो उपनय कराय छे अथवा पूर्वपक्षना स्थापनमा जे उत्तररूप उपनय ते उपन्यासोपनय केवळ उत्तररूप युक्ति मात्र छतां पण दृष्टांतनो भेद छ कारण ज्ञात-दृष्टांतनो हेतु होय छे. जेमके-*आत्मा अमृतपणाथी आकाशनी माफक अकर्ता छ, एम की छते अन्य
* आ सांख्य मत छे. तेओ आत्माने कर्ता मानता नथी पण भोक्ता माने छे.
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