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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्था सानुवाद ॥४८३ ।। ४ स्थानकाध्ययने उद्देशः३ सच्चप्रति माजीवस्पृ कहेला छे. उत्पत्तिवडे लोकनो असंख्यातमो भाग छे. "बादरतेउक्काइयाणं अपज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता, लोयस्स दोसु उड्डकवाडेसुं तिरियलोयतढे य'त्ति० बादर अपर्याप्तक तेजस्कायिकोना स्थानो लोकनाये ऊर्ध्व कपाटने विषे अने ऊर्ध्व कपाटमा रहेला तिर्यकलाकने विषे कहेल छे. कोईक आचार्यो तिर्यक्लोकरूप स्थालमां पण कहे छे. तथा"कहिन्नं भंते! सुहमपुढविकाइयाणं पज्जत्तगाणं अपज्जत्तगाण य ठाणा पन्नत्ता? गोयमा ! सुहुमपुढविकाइया जे पजत्तगा जे य अपज्जत्तगा ते सव्वे एगविहा अविसेसमणाणत्ता सव्वलोगपरियावन्नगा पन्नत्ता समणाउसो!" त्ति. हे भगवन् ! पर्याप्तक अने अपर्याप्तक सूक्ष्म पृथ्वीकायिकोना स्थानो क्या कहेला छे ? उत्तर हे गौतम ! जे सूक्ष्म पृथ्वीकायिको पर्याप्तक अने अपर्याप्तक छे ते बधाय एक सरखा, विशेष रहित, भिन्नस्वरूपे नहि एटले X| सर्व लोकने विषे व्यापीने रहेला कहेला छे. हे आयुष्मान् श्रमणो! एमज बीजा अपकायिकादि चारे सूक्ष्मो जाणवा. | " एवं बेइंदियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता, उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागो" त्ति० पर्याप्त अने अपर्याप्त, द्वींद्रियोना स्थानो कहेला छे. उत्पत्तिवडे लोकनो असंख्यातमो भाग छे. एमज शेष सोना पण स्थानो जाणवा. (सू० ३३३ ) चारवडे लोक स्पर्शायेल छे एम कयुं, माटे लोकना प्रस्तावथी लोकनी अने धर्मास्तिकायादिनी परस्पर प्रदेशथी समानता कहे छे. 'चत्तारी त्यादि. सरळ छे. विशेष ए के-प्रदेशाग्र-प्रदेशना परिमाणवडे तुल्य-समान छे, केमके आ बधायना असंख्यात प्रदेश होवाथी 'लोयागासे' त्ति. आकाशअनंत प्रदेशपणुं होईने धर्मास्तिकाय विगरेनी साथे अतुल्यतानी प्राप्ति थवाथी 'लोक'नुं ग्रहण करेल छे. 'एगजीवे 'त्ति. सर्व जीवोना, अनंत XXX Oxxxxxxxxxxxxxxxxxxx लोकस्पृष्ट प्रदेशाग्रतुल्याः सू० ३३०३३४ XXXX) X॥४८३ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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