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भीस्थानाङ्गसूत्र
सानुवाद
॥। ४८० ॥
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बीजुं जन्मा॑त॒रमा॑ां थनारुं मनुष्य संबंधी, पछी मोक्षमां जवाथी केटलाएकने त्रीजुं शरीर न होय. एवी रीते अधोलोकमां चार प्रकारना पूर्वोक्त जीवो के शरीरवाळा कडेला छे. वळी तिर्यकूलोकमां पण एम ज जाणवुं. (सू० ३२९)
टीकार्थ:-' चत्तारी' त्यादि० वे सूत्र प्रायः उक्तार्थ छे, तो पण कईक कहेवाय छे. सातमी नरकपृथिवीमां कालादि पांच नरकावासोना मध्यमां रहेल अप्रतिष्ठान नामनुं नरकावास छे ते एक लाख योजन छे. पालक देवे बनावेलं, सौधर्मेंद्र संबंधी यान (वाहन) रूप विमान अथवा जवा माटेनुं विमान, ते यान विमान परंतु ते शाश्वत नथी. पांच अनुत्तर विमानोना मध्यमां सर्वार्थसिद्ध नामनुं विमान छे. लोकने विषे चार वस्तु समान होय छे. केवी रीते ? ते कहे छे 'सपक्खि सपडिदिसं' ति समान हे दिशाओ जेने विषे ते सपक्ष ( अहिं 'इकार' प्राकृतपणान लईने छे) तथा समान छे विदिशाओ जेने विषे तेसप्रतिदिक् ते जेम होय छे तेम समान होय छे अथवा पक्षोवडे सरखा ते सपक्ष, अहिं अव्ययीभाव समास छे. नीचे अने उपरना विभागवडे रहेल, विस्तारवाळा अने सांकडा बे द्रव्य पदार्थोनी अथवा विषमताए रहेला तुल्य प्रमाणवाळा ने पदार्थोंनी दिशा अने विदिशाओ होती नथी माटे अत्यंत समानताने देखाडवा सपक्ष अने सप्रतिदिक्रूप ने विशेषण कहेल छे. प्रथम नरकभूमिमां पहेला प्रस्तर (पाथडा) ने विषे पीस्तालीश लक्ष योजनप्रमाण सीमंतक नामनो नरकावास छे. समय-काळवडे जाणाक्षेत्र समयक्षेत्र अर्थात् मनुष्यक्षेत्र. सौधर्मकल्पमां प्रथम प्रस्तरटने विषे ज उडु नामनुं विमान छे. रत्नप्रभादि पृथिवीनी अपेक्षाए इपत् (अल्प) छे प्राग्भार- ऊंचाई विगेरे जेणीमां ते इषत्प्राग्भारा जाणवी. (सू० ३२८) इषत्प्राग्भारा पृथिवी ऊर्ध्व लोकविषे होय छे माटे ऊर्ध्व लोकना प्रस्तावथी कहे छे-'उड्डे' त्यादि०ने छे शरीर जेओने ते वे शरीरवाळा, पृथिवीकायिक
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४ स्थान
काध्ययने उद्देशः ३
लोके समा
द्विशरीराब
०३२८२९
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