SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir KOOOoxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxcom (१० ३२७) पूर्वे जात्यादि गुणवडे अश्वादिथी पुरुषोनी समानता कही, हवे अप्रतिष्ठान विगेरेनी समानताने प्रमाणथी कहे जे चत्वारि लोगे समा पं० सं०-अपइट्ठाणे नरए १ जंबुद्दीवे दीवे २ पालते जाणविमाणे ३ सव्वट्रसिद्ध महाविमाणे ४ । चत्तारि लोगे समा सपक्खि सपडिदिसिं पं० त०-सीमंतए नरए १ समयक्खेत्ते २ उडुविमाणे ३ ईसीपब्भारा पुढवी ४। सू० ३२८, उडालोगेणं चत्तारि बिसरीरा पं० तंपुढविकाइया आउ० वणस्सइ० उराला तसा पाणा. अहो लोगे णं चत्तारि बिसरीरा पं०२०-एवं चेव, एवं तिरियलोएवि ४ । सू० ३२९ - मूलार्थ:-लोकने विषे चार वस्तु समान कहेल छे, ते आ प्रमाणे-१ सातमी नरकनो अप्रतिष्ठान नामनो नरकावास, २ जंबूद्वीप नामनो द्वीप, ३ पालक नामर्नु यान विमान अने ४ सर्वार्थसिद्ध नामर्नु महाविमान. आ दरेक एक लाख योजनना लांबापहोला छे. लोकमां चार वस्तु, दिशा अने विदिशाए समान कहेली छे, ते आ प्रमाणे-१ पहेली नरकभूमिनो सीमंतक नामनो नरकावास, २ समयक्षेत्र (मनुष्यलोक), ३ सौधर्म देवलोकनुं उड नामर्नु विमान अने ४ ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी. आ दरेक पास्तालीश लाख योजनना लांबापहोळा छे.(सू० ३२८) ऊर्ध्वलोकमां चार प्रकारना जीवो वे शरीरवाळा कहेला छे,ते आ प्रमाणे१ पृथिवीकायिक, २ अपूकायिक, ३ वनस्पतिकायिक अने ४ स्थूल त्रस जीवो केमके एक शरीर वर्चमान भव संबंधी अने For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy