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भीस्था
नाङ्गसूत्र
सानुवाद ॥ ४७९ ॥
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अने संयमवडे वृद्धि पामे छे अने रागथी हीन थाय छे, चोथो ज्ञान अने संयमथी वृद्धिने पामे छे अने राग-द्वेष उभयथी हीन थाय छे अथवा क्रोधवडे वधे छे अने मायावडे घटे छे, आ एक. बीजो क्रोधवडे बधे छे अने माया तथा लोभवडे घटे छे. जो क्रोध अने मानवडे वधे छे अने मायाथी घटे छे. चोथो क्रोध तथा मानवडे बधे छे अने माया - लोभथी घटे छे १४, प्रकंथको अथवा पाठांतरथी कंथको ते अश्वविशेषो, आकीर्ण-वेग विगेरे गुणोथी पूर्वे पण व्याप्त अने पछी पण तेवोज, आ प्रथम भेद, बीजो तो प्रथम आकीर्ण पण पाछळथी खलुंक-गळिओ अविनीत, त्रीजो प्रथम खलुंक पण पाछळथी आकीर्ण-वेगादि गुणवाळो, चोथा पूर्वे अने पछी पण खलुंक - गळिओ १५, आकीर्ण - गुणवान अने आकीर्णपणावडे - विनय वेगादि गुणवान - पणाए वहे छे - प्रवर्त्ते छे. पाठांतरमां 'विहरती' त्ति० छे - विचरे छे. बीजो आकीर्ण, पण आरोहण-चडावना दोपवडे खलुंकपणाए - गळिआपणाए वहे छे. त्रीजो खलुंक छे पण आरोहक - स्वारना गुणथी आकीर्ण गुणपणाए वहे छे. चोथो तो सुगम छे १६, बन्ने सूत्रमां पण दातिकरूप पुरुषो जोडवा.सूत्रमां तो क्यांक नथी कला, केमके सूत्रनी गति विचित्र होय छे. १७ - १८, जाति ४, कुल ३, बल २, रूप अने जय १--ए पांच पदने विषे द्विक्संयोगी दश भंगवडे प्रकंथकना दृष्टांतरूप दश चतुर्भगी सूत्रोछे २८. ते प्रत्येक सूत्रने ज अनुसरण करता सता दातिकरूप दश पुरुषसूत्रो थाय छे ३८, अर्थात् जाति अने कुलबल-रूप- जय पदथी चार, कुल अने बल-रूप-जय पदथी त्रण, बल अने रूप-जय पदथी व तथा रूप अने जय पदथी एक एवी रीते द्विक्संयोगी दश भांगा थाय छे. विशेष ए के--जय बीजानो पराजय करवो-बीजाने जीत सिंहपणाए - शौर्यपणाए गृहवासथी नीकळेल - दीक्षित थयेल तेमज उद्यत (तत्पर) विहारवडे विचरे छे - शीयाळपणाए - दीनवृत्तिथी विचरे छे ३९.
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४ स्थान
काध्ययने उद्देशः ३ आत्मभरि
त्वादि चतु
भङ्ग्यः
सू० ३२७
॥ ४७९ ॥