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चोथो भंग १२, आ जन्ममां ज अर्थ-मोगसुखादि प्रयोजन अथवा आस्था-'ए ज सारुं छे' एवी छे बुद्धि जेनी ते ईहाथै अथवा इहास्थ मोगपुरुष अथवा लोकमां प्रतिबंध पामेल, परत्र-जन्मांतरने विषेज प्रयोजन अथवा आस्था के जेने ते पराथें अथवा परास्थ ते साधु अथवा बालतपस्वी, उभय लोकने विषे प्रयोजन अथवा आस्था छ जेने ते सुश्रावक अथवा बन्ने लोकना सुखमां बंधाएल उभयलोकना प्रयोजनथी रहित ते कालसौकरादि अथवा मूढ अथवा 'इहैव'-कोईक विवक्षित ग्राम विगेरेमा ज रहे ते इहस्थ, तेमां बंधाएल होवाथी 'न परस्थ-परमा रहेल नथी १, बीजो तो परत्र-बीजे स्थले प्रतिबद्ध होवाथी परस्थ २, अन्य तो उभय स्थलमा रहेनार ते उभयस्थ ३ अने चोथो तो सर्वत्र अप्रतिबद्ध होवाथी अनुभयस्थ-साधु १३, काइक एकवडे-श्रुतवडे वृद्धिने पामे छे अने एकथी-सम्यग्दर्शनथी हीन थाय छे. कयु छ के|जह जह बहस्सुओसं-मओयसीसगणसंपरिडोय।अविणिच्छिओय समए,तह तह सिद्धंतपडिणीओ।
जेम जेम बहु शास्त्रनो ज्ञाता होय, घणा लोकोवडे सम्मत होय,तथा शिष्यना समुदायवडे सारी रीते परिवृत्त होय, पण सिद्धांत. ना तत्त्वमा अनिश्चित-अजाण होय तो ते सिद्धांतनो प्रत्यनीक-वैरी थाय छे. आ एक.
बीजो एकवडे-श्रुतवडे वृद्धिने पामे छ अने बेथी ( सम्यग्दर्शन तथा विनयथी ) हीन थाय छे. श्रीजो बेवडे-श्रुत अने अनुष्ठानवडे वृद्धि पामे छे पण एकथी-सम्यग्दर्शनथी हीन थाय छे. चोथो बेथी-श्रुत अने अनुष्ठानथी वृद्धि पामे छ पण बेथी सम्यगदर्शन अने विनयथी हीन थाय छे अथवा ज्ञानवडे वृद्धि पामे छे अने रागद्वेष-बन्नेथी हीन थाय छ, त्रीजा ज्ञान
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