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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www kabarthang Acharya Shri Kailasagarsuri Gyarmandie OxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxXKOKOKOKOxy विगेरेनुंज एक शरीर अने बीजुं जन्मांतरमा थनारुं मनुष्य शरीर. आबे उपरांत त्रीजुं शरीर केटलाएक जीवोने थतुं नथी; कारण के ते अंतर रहित मोक्षमा जाय छे. 'ओराला तसत्ति०-उदारा-स्थूल द्वींद्रियादि जीवो, परंतु तेजस्कायिक अने वायुकायिकरूप सूक्ष्म जीवो नहिं केम के तेओने वीजा भवमा मनुष्यभवनी प्राप्ति न थवाथी मोक्ष थतो नथी, माटे अन्य शरीरनो संभव होय छे ( तेथी बन्नेनो निषेध करायेल छे) तथा उदार प्रसनुं ग्रहण करवावडे द्वींद्रियादिनु प्रतिपादन छते पण अहिं बे शरीरपणाथी पंचेंद्रियो ज (गर्भज) ग्रहण करवा योग्य छ, कारण के विकलेंद्रियोने अंतर रहित बीजा भवमा सिद्धिनो अभाव होय छे. कयु छ के-" विगला लभेज्ज विरई ण हु किंचि लभेज्ज सुहुमतसा "-विकलेंद्रियो अनंतर-मनुष्यादिभवमा विरतिने प्राप्त करी शके छे परंतु सूक्ष्म त्रसो-तेउ, वाउ अनंतर भवमां कई पण न पामे-समकित पण पामे नहिं. लोकना संबंधी प्राप्त थयेल अधोलोक अने तिर्यक्लोक संबंधी वे अतिदेशसूत्र उक्तार्थ छे. (सू० ३२१) तिर्यक्लोकना अधिकारथी तेमां उत्पन्न थयेल संयतादि पुरुषने भेदोवडे कहे छ चत्तारि पुरिसजाया पं०२०-हिरिसत्ते हिरिमणसत्ते चलसत्ते थिरसत्ते । सू०३३०, चत्वारि सिज| पडिमाओ पं०. चत्तारि वत्थपडिमाओ पं०, चत्तारि पायपडिमाओ पं०. चत्तारि ठाणपडिमाओ पं०।सू० * अहीं सूक्ष्म शब्द आपेक्षिक छे माटे सूक्ष्म अने बादर बन्ने तेनो, वायु लेवा अर्थात् बोजा जीवोनी अपेक्षाए सूक्ष्म-झीणो कायावाळा. ४ तेउ अने वाउना शरीरथो बहु जोबोनी हिंसा यतो होवाथी तेओने समकितनी प्राप्ति पण थतो नथी. For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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