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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir KXxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx माने छे से सुप्रत्यानंद ४, दुर्गत-दरिद्र थको जे दुर्गतिने विषे जशे ते दुर्गतिगामी, एम बीजा ऋण भांगा जाणवा. विशेष एके-सुगतिने विषे जशे ते सुगतिगामी, सुगत-ईश्वर अथात् ऐश्वर्यवाळो ५, दुर्गत पूर्ववत् , दुर्गति प्रत्ये गयो ते यात्रिको उपर कोप थवाथी मारवा माटे तत्पर थयेलद्रमक(भिखारी)नी जेम, एम बीजा त्रण भांगा जाणवा ६, तम-अंधकारनी जेम तमअंधकार पहेला अज्ञानरूप होवाथी अथवा अप्रकाशपणुं-अप्रसिद्धपणुं होवाथी पछी पण अंधकाररूप ज आ एक, बीजा तो प्रथम तमरूप अने पछीथी ज्योतिनी जेम ज्योति, केमके ज्ञान मेळववाथी अथवा प्रसिद्धि पामवाथी, शेष बे भंग सुगम छे ७, तम-कुकमेनो करनार होवाथी मलिन स्वभाववाळो, अने तम-अज्ञान छे बल-सामर्थ्य जेनुं ते तमम्बल अथवा तमः-अंधकार, एज बल अथवा अंधकारमा बल छ जेनु ते तमाबल खराब आचारवाळो अज्ञानी अथवा रात्रिमा फरनार ४ चोर विगेरे आ एक, तथा तमः पूर्ववत , ज्योति-ज्ञानबल छ जेनुं ते ज्योतिबल अथवा सूर्य विगेरेनो प्रकाश, ते जछे बल अथवा तेमां-प्रकाशमां बल छ जेनुं ते ज्योतिबल. आ असदाचारी ज्ञानवान अथवा दिवसमां फरनार चोर विगेरे, आ चीजो. ज्योति:-सत्कर्मने करनार होवाथी उज्ज्वळ स्वभाववाळा अने तमोवल पूर्वनी जेम, आ सदाचारवाळो अज्ञानी अथवा कारणवशात् रात्रिमा गमन करनार, आत्रीजो भंग, चतुर्थ भंग सुगम छे. आ सदाचारवाळो ज्ञानी अथवा दिवसमा गमन करनार ८, तथा तमः पूर्ववत् 'तमबलपलज्जणे' त्ति० तमः-मिथ्याज्ञान अथवा अंधकार, तेज बल अथवा तेमां छे बल अर्थात् तमोबलमां अथवा उक्तरूप तममां अने बल-सामर्थ्यमा 'प्ररज्यते'-रति करे छे ते तमोबलप्ररंजन १, एवी रीते * आ द्रमकनी कथा उपदेशप्रासाद ग्रंथमा छे KKKXxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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