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भीस्थानानपत्र
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॥४७७॥
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| मात्र उदरपोषण करनार ३९. (सू०३२७)
टीकार्थः-' चत्तारी 'त्यादि० आत्माने भरे छ-पोषण करे छे ते आत्मभरी, प्राकृतपणाथी 'आयंभरे' तथा बीजाने पोषण करे छे ते परंभरी, प्राकृतपणाथी परंभरे ' तेमा प्रथम भंगने विषे पोताना अर्थ-कार्यने ज करनार ते जिनकल्पी. बीजो भांगो, परना कार्यने ज करनार ते भगवान अरिहंत केमके पोताना समग्र कार्यनी समाप्ति थयेल होईने अन्यने मुख्य प्रयोजननी प्राप्ति कराववामां दक्षतापूर्वक कहेनार होय छे, तृतीयभंगमा स्व-परनुं कार्य करनार ते स्थविरकल्पी, केमके ते शास्त्रोक्त अनुष्ठानथी पोतानुं कार्य करनार होय छे अने विधिपूर्वक सिद्धांतनी देशना देवाथी अन्यना कार्यसंपादक पण होय छे. चोथा भांगामा स्व-परना कार्यने नहिं करनार ते कोईक मूढमति अथवा यथाच्छंद-स्वच्छंदाचारी. एवी रीते लौकिक पुरुषनी पण योजना करवी १, स्वपरनो उपकार नहिं करनार दुर्गत-दरिद्र ज होय, माटे दुर्गतसूत्र कहे छ-दुर्गत पूर्वे धनवडे हीन होवाथी अथवा ज्ञानादिरत्नवडे हीन होवाथी दरिद्र छे अने पछी पण दुर्गत-दरिद्र छे अथवा दव्यथी दुर्गत-दरिद्र.
वळी भावथी दुर्गत-ज्ञानादि हीन आप्रथम भंग १, एम ज बीजा त्रण भांगा जाणवा. विशेष ए के सुगत-द्रव्यथी धनवान अने भावथी x ज्ञानादिगुणवान् २, कोईक दुर्गत व्रतवाळो थाय माटे दुर्बत सूत्र कहे छे-दुर्गत-दरिद्र, दुर्बत-अयथार्थ व्रतवाळो अथवा दुर्व्यय
पेदाशनी अपेक्षा(विचार) कर्या सिवाय व्यय-खर्च करनार, अथवा खराब स्थान-व्यसनादिने विषे व्यय करनार, आ एक,
बीजो दरिद्र थको सुव्रत-निरतिचार नियमवाळो अथवा दानादि उचित कार्यनी प्रवृत्तिथी सुव्यय करनार, त्रीजो अने चोथो * भांगो स्पष्ट छ ३, दुर्गत पूर्ववत् अने उपकारीए करेल उपकारने जे नथी मानतो ते दुष्प्रत्यानंद, जे उपकारीना उपकारने
४स्थानकाभ्ययने उद्देशः३
आत्मभरि* त्वादि चतु
भङ्ग्या सू०३२७
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॥ ४७७॥
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