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एम चार भांगा जाणवा. (२३) ए दृष्टांते चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे- १ कोईक पुरुष जातिसंपन्न छे पण रूपसंपन्न नथी, एम चार भांगा जाणवा. (२४) चार प्रकारना अश्वो कहेला छे, ते आ प्रमाणे- १ कोईक अश्व जातिसंपन्न पण जय (जीत) संपन्न नथी, २ कोईक जातिसंपन्न नथी पण जयसंपन्न छे, ३ कोईक उभयसंपन्न छे अने ४ कोईक उभयसंपन्न नथी. (२५) ए दृष्टांते चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे १ कोईक पुरुष जातिसंपन्न छे पण जयसंपन्न नथी, एम चार भांगा जाणवा. (२६) एवी रीते कुलसंपन्न अने बलसंपन्न शब्दथी चार भांगा, (२७) कुलसंपन्न अने रूपसंपन्न शब्दथी चार भांगा, (२८) कुलसंपन्न अने जयसंपन्न शब्दथी चार भांगा, (२९) एवी रीते बलसंपन्न अने रूपसंपन्न शब्दथी चार भांगा, (३०) बलसंपन्न अने जयसंपन्न शब्दथी चार भांगा अश्वमां जाणवा, (३१) सर्वत्र प्रतिपक्षरूप पुरुषमां पण एमज चार चार भांगा जाणवा अर्थात् कोईक पुरुष कुलसंपन्न छे पण बलसंपन्न नथी एम चार भांगा जाणवा. (३२) एवी रीते पुरुषमां बीजी पण चार चभंगी करवी. (३३-३६) चार प्रकारना अश्वो कहेला छे, ते आ प्रमाणे- १ कोईक अश्व रूपसंपन्न छे पण जयसंपन्न नथी, एम चार भांगा करवा (३७), आ दृष्टांते चार प्रकारना पुरुषो कहेला छ, ते आ प्रमाणे- १ कोईक पुरुष रूपसंपन्न छे पण जयसंपन्न नथी एम चार भांगा करवा (३८), चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे- १ कोईक पुरुष सिंहनी पेठे शौर्यपूर्वक दीक्षा लेवा नीकळेल अने सिंहनी माफक विचरे छे-पाळे छे-धन्ना अणगारनी जेम, २ कोईक सिंहनी पेठे दीक्षा लेवा नीकळेल पण कायरपाथी शीयाळनी माफक पाळे छे-कंडरिकवत्, ३ कोईक शीयाळनी माफक दीक्षा लेवा नीकळेल अने सिंहनी पेठे विचरे छेपाळे छे - भवदेव (जंबूस्वामीना जीव) वत्, ४ कोईक शीयाळनी माफक दीक्षा लेवा नीकळेल अने शीयाळनी माफक पाळे छे ते
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