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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX विपरीत छ अने प्रतिलोम पण छे केमके ते इंद्रिय अने मनने आह्लाद करनार नथी अथवा आ बन्ने शब्द एकार्थ वाचक छे, परंतु अत्यंत अमनोज्ञपणाने सूचबवा माटे बे शब्द कहेला छे. यावत् शब्द परिमाणना अर्थमां छे. 'चत्तारि पंचे' ति आ शब्द विकल्प बताववा माटे छे. कदाचित् भरतादि क्षेत्रने विषे एकांत सुषमादि समय(आरा)मां चारसो योजन ज, अने अन्य काळमां तो पांचसो योजन पण होय छे, केमके मनुष्य अने पंचेंद्रियतिर्यंचोनी बहुलताने लईने औदारिक शरीरोनी बहुलता होवाथी तेना अवयवो अने तेना मळोनी पुष्कळताथी दुरभिगंधनी प्रचुरता होय छे. मनुष्यक्षेत्रमा आववानी इच्छावाळा देवोने मनुष्यक्षेत्रथी गंध आवे छे, आम मनुष्यक्षेत्रं अशुभस्वरूप ज कडं, परंतु देव अथवा अन्य मनुष्यादि नव योजन करता विशेष दूरथी आवती गंधने जाणता नथी. अथवा आ उक्त( आगम )वचनथी जे इंद्रियना विषय- प्रमाण कछु छे ते औदारिक शरीर संबंधी इंद्रियोनी अपेक्षाए संभवित छ, नहिंतर लक्षादि योजन प्रमाणवाळा विमानोने विषे दूर रहेला देवो (सुघोषा )घंटाना शब्दने केम सांभळी शके १ जे बीजाने संभळाय छे ते प्रतिशब्द. द्वारा अथवा बीजी रीते. नरभवनुं अशुभपणुं आ मनुष्यलोकमां न आववार्नु चोकारण कयु. शेष सुगम छे. आववाना कारणो प्रायः पूर्वनी माफक छ तथापि कईक विशेष कहेवामां आवे छ के-कामभोगने विषे अमृञ्छितादि विशेषणवाळो जे देव, तेने ' एवं 'मिति. आवा प्रकारचें मन थाय छ के-मारा उपकारक कोण छ ? ते कहे छे-आचार्य छे. अहिं 'इति' शब्द समीपपणुं बताववामा अने 'वा' शब्द विकल्पना अर्थमा छे. एम आगळना सूत्रमा पण जाणवू. क्यांक इति शब्द नथी देखातो त्यां तो सूत्र सुगम ज छे. अहिं आचार्य-प्रतिबोधक, दीक्षा आपनार अथवा अनुयोगाचार्य-वाचना आपनार, उपाध्याय XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX) For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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