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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्था नाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ ४६७ ॥ www.kobatirth.org सूत्र भणावनार, आचार्यद्वारा उपदेश करायेल वैयावृत्यादिने विषे साधुओने जे प्रवर्त्तावे छे ते प्रवर्त्ती, प्रवर्ती-प्रवर्त्तकद्वारा जोड़ायेल संयमयोगने विष सीदाता ( खेद पामता ) साधुओने जे स्थिर करे ते स्थविर, गण छे विद्यमान जेने ते गणी - गणाचार्य, गणधर - जिनेश्वरना शिष्यविशेष अथवा आर्यिका साध्वीओ प्रत्ये सावधान रहेनार (रक्षा करनार) सिद्धांतमां प्रसिद्ध साधु विशेष, * 'गणस्यावच्छेदो'- गच्छ नो देश-विभाग, अमुक मुनिओना समुदाय छे जेने ते गणावच्छेदक, ते अमुक साधुओने लाईने गच्छना आधारने माटे उपधि विगेरेनी गवेषणाने माटे विचरे छे 'इम' ति० आ प्रत्यक्ष रहेल रूपवाळी अर्थात् काळांतरने विषे पण अन्य स्वरूपने नहिं भजनारी तेवी दिव्या - स्वर्गने विषे थयेली अथवा प्रधान ( श्रेष्ठ ) विमान, रत्नादि रूप देवनी ऋद्धि, द्युत-शरीरथी उत्पन्न or if अथवा युति - इष्ट परिवारादि संयोगलक्षण युक्ति, ' लब्धा ' -जन्मांतरमां उपार्जन करेली, 'प्राप्ता' - वर्त्तमानमां मळेली, ' अभिसमन्वागता ' - भोग्यअवस्थाने प्राप्त थयेली, 'तं 'ति ते कारणथी ते भगवंतो- पूज्योने स्तुतिओवडे वंदन करूं, प्रणामवडे नमन करूं, आदर करवावडे अथवा वस्त्रादिवडे सत्कार करूं, उचित प्रतिपत्ति- उपचाररूप सेवावडे सन्मान करूं, कल्याणस्वरूप, मंगलस्वरूप, देवस्वरूप अने चैत्यस्वरूप आवी बुद्धिवडे सेवा करूं-आ देवने आववानुं एक कारण. श्रुतज्ञानादिवडे ज्ञानी इत्यादि बीजं कारण. तथा ' भाया इ वा भज्जा इ वा भइणी इ वा पुत्ता इवा धूया इ वे 'ति अर्थात् भाई, भार्या, भगिनी, पुत्र अने पुत्री स्नुषा पुत्रनी भार्या 'तं ' उपरोक्त मारा * कोई साध्वी रूपसंपन्न होय अने तेनुं शील भंग करवा माटे दुष्ट राजादि तत्पर थयेल होय तेवी साध्वीओनी संभाळ करनार इषुशास्त्रविशारद सहस्रयोधी मुनि ( शशकभसकादि मुनिनो जेम) तेओने अन्यत्र लई जईने पण तेना शीलनो रक्षा करे छे. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *******: ४ स्थानकाध्ययने उद्देशः ३ मातापित्रा दिसमाः श्रावकार, वीरश्रावक देवत्वं, देवा गमानाग मकारणानि सू० ३२१३२३ ।।। ४६७ ।।
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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