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मूलार्थ:-चार प्रकारना घुणा (काष्ठमां उपजे ते जीवो) कहेला छे, ते आ प्रमाणे- कोईएक घुणा बहारनी त्वचा (छाल)खानार, कोई एक अंतरी छालने खानार, कोईएक लाकडाने खानार अने कोईएक लाकडाना सार ( गर्भ ) ने खानार, आ दृष्टांते चार प्रकारे भिक्षुको-साधुओ कहेला छे, ते आ प्रमाणे- एक बहारनी त्वचा -छालना खानार घुणा सरखा, ते साधु आयंबिल प्रमुख तप करनार अने तुच्छ आहारना करनार, एक अंदरनी छालने खानार घुगा समान साधु, ते लेप रहित (चणा विगेरे) आहारना करनार, कोई काष्ठना खानार घुणा समान साधु, विगय रहित आहार करनार, कोईक सार खानार घुणा समान साधु, सरस भोजन करनार, त्वचाने खानार समान साधुनुं सार खानारना जेवुं तप छे, सारने खानार समान साधुनुं त्वचाने खानार समान तप छे, छालने खानार समान साधुनुं काष्ठने खानार समान तप छे अने काष्ठने खानार समान साधुनुं छाल खानार समान तप छे. ( सू० २४३ )
टीकार्थ :- त्वचं - बहारनी छालने जे खाय छे ते त्वक्खाद त्वचाने खानार, एवी रीते शेष (त्रण) जाणवा. विशेष ए के'छल्लि ' ति० अंदरनी छाल, काष्ठ - लाकडुं अने सार - लाकडानो मध्य-अंदरनो भाग, आ दृष्टांत छे. 'एवमेवे 'त्यादि ० उपनय सूत्र छे. भिक्षण स्वभाववाळा, याचनाना धर्मवाळा अथवा भिक्षामां श्रेष्ठ ते भिक्षाको (मुनिओ), त्वचाने खानार घुणा समान - अत्यंत संतोषीपणाए आयंबिलादि तपमां प्रांत-तुच्छ आहारना खानार होवाथी त्वचाने खानार जेवो १, एवी रीते अंदरछालने खानार जेवो, लेप रहित आहारने करनार होवाथी २, काष्ठने खानार जेवो, विगय रहित आहार करवाथी ३, सार खानार जेवा, सर्वकामगुण-इंद्रियोने पुष्टि करनार आहार करवाथी, आ चारे भिक्षुओना उपविशेषने कहेनारुं सूत्र - ' तय
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