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४ स्थानकाध्ययने उद्देशः १ त्वक्खादादिः सू० २४३
श्रीस्था
कालींगा विगैरेनी बेलडीओ. मढविषाणा-मेंढाना शीगडा समान फळवाळी वनस्पतिनी जाति, अर्थात् आवळ, तेनु कारक ते नाङ्गसूत्रमंडवियाणा
मढविषाणकोरक. आ चार ज कोरक दृष्टांतपणाए ग्रहण करेला छे माटे चार एम का छे, परंतु लोकमां (कोरक) चार ज नथी सानुवाद परन्तु अति घणा जणाय छे. 'एवे'त्यादि० सुगम छे. विशेष ए के-उपनय आ प्रमाणे जाणवो-जे पुरुष, सेवायो थको ॥३४२॥ योग्य कालमां उचित उपकाररूप फळने आपे छे ते आम्रप्रलंबकारक समान, वळी जे पुरुष सेवकने घणा काळवडे कष्टथी महान्
उपकारफळने करे छे ते तालप्रलंबकोरक समान, वळी जे पुरुष क्लेश विना तत्काल फलने आपे छे ते वल्लीप्रलंबकोरक समान अने जे पुरुष सेवायो थको पण सारां वचनोने ज कहे छे परंतु कंईपण उपकार करतो नथी ते मेंढविषाणकोरक समान जाणवो. आवळना कोरकनो सुवर्ण जेवो वर्ण होवाथी अने न खावा लायक फळने देनार होवाथी तेनी उपमा आपी छे. (५० २४२) पुरुषना अधिकारमा ज घुण( लाकडाने कोतरनार जंतु )ना सूत्रने कहे छे
चत्तारि घुणा पं० तं०-तयक्खाते छल्लिक्खाते कट्रक्खाते सारक्खाते. एवामेव चत्तारि भिक्खागा पं०२०-तयक्खायसमाणे जाव सारक्खायसमाणे, तयक्खातसमाणस्स णं भिक्खागस्स सारक्खातसमाणे तवे पण्णत्ते, सारक्खायसमाणस्स णं भिक्खागस्स तयक्खातसमाणे तवे पण्णत्ते, छल्लिक्खायसमाणस्स णं भिक्खागस्स कट्टक्खायसमाणे तवे पण्णते, कटक्खायसमाणस्स गं भिक्खागस्स छल्लिक्खायसमाणे तवे पण्णत्ते । सू० २४३
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॥३४२॥
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