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४ स्थान
काध्ययने
श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥३४३॥
उद्देशः १ त्वक्खादादिः सू० २४३
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क खाये' त्यादि० सुगम छे, भावार्थ ए छे के-बहारनी छाल जेवा असार आहार वापरनारने आसक्तिपणुं न होवाथी कर्मना भेद(विनाश )ने स्वीकारीने वज्रसार (वन जेवू) तप होय छे, माटे सूचना करे छे-'सारक्खायसमाणे तवे त्ति. सारने खानार होवाथी सार खानार घुणानुं सामर्थ्य अने वज्र जेवू मुख होवाथी १, सारने खानार समान कहेल लक्षणवाळा साधुनुं सरागपणाए बहारनी हालने खानार समान तप होय छे, ते कर्मना रसने भेदवाने समर्थ थतुं नथी, बहारनी छालने खानार घुणाने चोकस त्वक् छाल )खावाप' होवाथी काष्ठना सारना भेदन प्रत्ये असमर्थ होवाथी २, तथा अंतरछालने खानार घुणा जेवा साधुने बहारनी छाल खानार घुणा जेवानी अपेक्षाए कईक विशिष्ट-सारा भोजनना करवावडे कईक सरागपणुं होवाथी अने काष्ठना सारने खानार अने काष्ठने खानार घुणा समान साधुनी अपेक्षाए तो हलका भोजन करवाबडे आसक्ति न होवाथी कर्मना भेदन प्रत्ये काष्ठने खानार घुणा समान तप कडुं छे. सारने खानार घुणानी जेम अति तीव्र तप नहि अने त्वक् अने छालने खानार घुणानी माफक अतिमंद विगेरे तप नहिं, आ रहस्य छे ३, काष्ठने खानार घुणा जेवा साधुने सारने खानार घुणा जेवानी अपेक्षाए सार रहित भोजन करवावडे आसक्ति न होवाथी त्वक् (बहारनी छाल) अने अंतर छालने खानार घुणा जेवा साधुनी अपेक्षाए विशेष सारा भोजनने करवावडे अने सरागपणु होवाथी छालने खानार घुणा समान तप का छे, कर्मना भेदन प्रत्ये सारने खानार अने काष्ठने खानार घुणानी जेम अतिसमर्थ विगेरे तप नथी, त्वकने खानार घुणानी माफक अतिमंद पण नथी ४. प्रथम विकल्पमा प्रधानतर तप, बीजामां अप्रधानतर, त्रीजामा प्रधान अने चोथा विकल्पमा अप्रधान तप छे. (सू० २४३) हमणा ज वनस्पतिना अवयवोने खानार घुणाओ कह्या, माटे वनस्पतिनी
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४॥३४३॥
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