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श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥४५१॥
उदितोदि
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समराशि( २-४ )युग्म कहेवाय छे अने विषमराशि (१-३) ते ओज कहेवाय छे. आ जैनसिद्धांतनी मर्यादा छे. लोकमां ४ स्थानतो कृतयुग्म विगेरे आ प्रमाणे कहेवाय छे-"कलियुगमा चार लाख ने बत्रीश हजार वर्ष होय छे. द्वापरयुगमा आठ लाख काध्ययने ने चौसठ हजार, त्रेतायुगमां बार लाख ने छन्नु हजार अने कृतयुगमा ससर लाख अठ्यावीश हजार वर्ष होय छे." पूर्वोक्त उद्देश: ३ राशियोनुं नारकादिने विष निरूपण करता थका सूत्रकार कहे छे-'नेरइए'त्यादि० सुगम छे. नारक विगैरे चार प्रकारनी राशिवाळा पण होय केम के जन्म अने मरणवडे हीन या अधिकपणानो संभव होय छे. (सू० ३१६) वळी जीवोने ज
तादिचतुर्भभावोवडे निरूपता थका सूत्रकार कहे छे-' चत्तारि सूरे 'त्यादि वे सूत्र सुगम छे. विशेष ए के-शूर-वीरपुरुषो. क्षमामां शूरा अहंतो-श्रीमहावीर परमात्मानी माफक, तपमा शूरा अनगारो-दृढप्रहारी मुनिवत्, दानमा शूर वैश्रमण-उत्तर दिशानो
गिका युग्मलोकपाल( कुबेर ) ते तीर्थकर विगेरेना जन्मना समयमां अने धारणा विगेरेना समयमां रत्न विगेरेनी वृष्टि करवावडे दानमां
| शूरचतुष्कं शूर छे. कडुं छे के
* उच्चादिचतुवेसमणवयणसंचो-इया उ ते तिरियजंभगा देवा। कोडिग्गसो हिरन्ना,रयणाणिय तत्थ उवणेति ॥१६॥
कं लेश्या
। चतुष्कं० वैश्रमणना वचनथी प्रेराया थका ते तियग्नुंभकदेवो, क्रोडोगमे सुवर्णाने अने रत्नोने तत्र-तीर्थकरगृहने विषे लई जाय छे. 13 युद्धमां शूर वासुदेव-कृष्णवत् केम के तेने त्रण सो साठ संग्राममां जय मेळववानो होय छे. (मू० ३१७) *शरीर, कुल
सू० ३१५
३१९ * मूल अनुवादमां चार भांगा स्पष्ट लखेल छे.
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