________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अने वैभव विगैरेथी उच्च पुरुष, तथा औदार्यादि गुणयुक्त होवाथी उन अभिप्रायवालो ते उच्चच्छंद, नीचच्छंद तो पूर्वोक्तथी विपरीत अर्थात् नीच अभिप्रायवाळो, नीच पण उच्च कुलादिथी विपरीत छे. (सू० ३१८) हमणा ज ऊंच अने नीच आभिप्राय कह्यो ते लेश्याविशेषथी थाय छे माटे लेश्यामूत्रो कहेल छे, ते सुगम छे. विशेष ए के-असुरादिने द्रव्यना + आश्रयवडे चार लेश्याओ होय छे अने भावथी तो बधा य देवोने छ लेश्या होय छे, मनुष्य अने पंचेंद्रियतियंचोने तो द्रव्यथी अने भावथी पण छ लेश्या होय छे. पृथिवी, अप अने वनस्पतिना जीवोने ज तेजोलेश्या होय छे केम के तेओमां देवोनी उत्पत्ति होवाथी ते जीवोने चार लेश्या होय छे. (सू०३१९) कहेल लेश्याविशेषथी विचित्र परिणामवाळो मनुष्य थाय माटे वाहन विगेरे दृष्टांतरूप चतुर्भगीओवडे अने बीजी रीते पुरुषनी चतुर्भगी यानसूत्रादिना आरंभथी श्रावक सूत्रपर्यंत ग्रंथवडे बतावता थका सूत्रकार कहे छ के
चत्तारि जाणा पं० २०-जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते, एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पं० त०-जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे
+ देव अने नारकोने द्रव्यले श्या तेना आयुष्य पर्यंत अवस्थित होय छे ते द्रव्यो साथे बोना द्रव्योनो संपर्क थवाथी भावलेश्या छए होय छे, परंतु मूल द्रव्यो बदलाता नथी. तदाकार मात्र भजे छे अने मनुष्य तियंचानी द्रव्यले श्याओ अंतर्मुहर्स अवस्थित रहे छे, पछीथी बदलाय छे, केवलीने अवस्थित रहे छे.
KXXXXXXXXXXXXXXX
oxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
xxxxxxxxxxxxXXXXXX
For Private and Personal Use Only