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गुणव्रत, अनर्थदंडादिथी निवर्त्तनरूप विरमण, नवकारसी प्रमुख प्रत्याख्यान, पोषध सहित उपवासने ग्रहण करे छे त्यारे तेने एक विश्राम कहेल छे, २ जे अबसरे सामायिक अने देशावगासिकने सारी रीते पाळे छे त्यारे तेने एक विश्राम कहेल है, ३ जे अवसरे चौदश, आठम, अमावास्या अने पूर्णिमारूप तिथिओने विषे परिपूर्ण पौषधने सारी रीते पाळे छे त्यारे तेने एक विश्राम कहेल हे. ४ जे अवसरे अपश्चिम( हेल्ली) मारणांतिकरूप संलेखनाने स्वीकारीने अने भक्तपाननं प्रत्याख्यान करीने पादप-छेदली वृक्षनी डाळनी माफक स्थिर थईने काळ(मरण)नी वांडाने नहिं करतो थको विचरे छे त्यारे तेने एक विश्राम कहेल छे. (१० ३१४)
टीकार्थः-पत्र-पांदडान प्राप्त थाय छे ते पत्रोपग अर्थात् घणा पत्रवाळो, एम ज पुष्पोपग विगेरे जाणवा. लोकोत्तर अने लौकिक पुरुषोनी पत्रवाळा विगैरे वृक्षनी साथे समानता तो क्रमशः जाणवी, ते आ प्रमाणे-१ अभिलाषीओने विष तथाविध उपकार नहिं करवावडे पोताना स्वभावमा ज समाप्त थवाथी, २ सूत्र भणावq विगेरेथी उपकारक होवाथी, ३ सूत्रना अर्थने आपवा विगेरेवडे महान् उपकारक होवाथी अने ४ ज्ञानादि कार्यमा प्रवर्ताव अने दोषथी बचावq विगेरेथी निरंतर सेवा करवा योग्य होवाथी. (मू० ३१३) भार-धान्य भरवाना आधारभूत( कोठी विगेरे )ने एक स्थानथी बीजा स्थान प्रत्ये वहन करनार-लई जनार पुरुषने आश्वासो-विश्रामो कहला छे, तेओना अबसरना भेदवडे विश्रामना भेदो छ.१ जे अबसरमां अंश-एक स्कंधथी बीजा स्कंध प्रत्ये भारने सहरे छे-लई जाय हे ते अवसरमां, 'से' ते वहन करनारने एक विश्राम कहेल छे, २ 'परिष्ठापयति' भार तजी दईने मृत्रपुरुषांदि त्याग करे छे ते बीजो विश्राम, ३ नाग
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