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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir KoxxxxxxxxxxxxxxxxxxxOKOXOXOKOKOKOKXXXX गुणव्रत, अनर्थदंडादिथी निवर्त्तनरूप विरमण, नवकारसी प्रमुख प्रत्याख्यान, पोषध सहित उपवासने ग्रहण करे छे त्यारे तेने एक विश्राम कहेल छे, २ जे अबसरे सामायिक अने देशावगासिकने सारी रीते पाळे छे त्यारे तेने एक विश्राम कहेल है, ३ जे अवसरे चौदश, आठम, अमावास्या अने पूर्णिमारूप तिथिओने विषे परिपूर्ण पौषधने सारी रीते पाळे छे त्यारे तेने एक विश्राम कहेल हे. ४ जे अवसरे अपश्चिम( हेल्ली) मारणांतिकरूप संलेखनाने स्वीकारीने अने भक्तपाननं प्रत्याख्यान करीने पादप-छेदली वृक्षनी डाळनी माफक स्थिर थईने काळ(मरण)नी वांडाने नहिं करतो थको विचरे छे त्यारे तेने एक विश्राम कहेल छे. (१० ३१४) टीकार्थः-पत्र-पांदडान प्राप्त थाय छे ते पत्रोपग अर्थात् घणा पत्रवाळो, एम ज पुष्पोपग विगेरे जाणवा. लोकोत्तर अने लौकिक पुरुषोनी पत्रवाळा विगैरे वृक्षनी साथे समानता तो क्रमशः जाणवी, ते आ प्रमाणे-१ अभिलाषीओने विष तथाविध उपकार नहिं करवावडे पोताना स्वभावमा ज समाप्त थवाथी, २ सूत्र भणावq विगेरेथी उपकारक होवाथी, ३ सूत्रना अर्थने आपवा विगेरेवडे महान् उपकारक होवाथी अने ४ ज्ञानादि कार्यमा प्रवर्ताव अने दोषथी बचावq विगेरेथी निरंतर सेवा करवा योग्य होवाथी. (मू० ३१३) भार-धान्य भरवाना आधारभूत( कोठी विगेरे )ने एक स्थानथी बीजा स्थान प्रत्ये वहन करनार-लई जनार पुरुषने आश्वासो-विश्रामो कहला छे, तेओना अबसरना भेदवडे विश्रामना भेदो छ.१ जे अबसरमां अंश-एक स्कंधथी बीजा स्कंध प्रत्ये भारने सहरे छे-लई जाय हे ते अवसरमां, 'से' ते वहन करनारने एक विश्राम कहेल छे, २ 'परिष्ठापयति' भार तजी दईने मृत्रपुरुषांदि त्याग करे छे ते बीजो विश्राम, ३ नाग xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxy For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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