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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्था नासूत्र सानुवाद ॥ ४४७ ॥ www.kobatirth.org देसावगासिय सम्ममणुपालेइ तत्थविय से एगे आसासे पण्णत्ते २, जत्थविय णं चाउदसमुद्दिट्ठपुन्नमासिणीसु पडिपुन्नं पोसहं सम्मं अणुपालेइ तत्थवि य से एगे आसासे पन्नत्ते ३, जत्थवि य णं अपच्छिममारणंतित संलेह्णाजूसणाजूसिते भत्तपाणपडितातिक्खित्ते पाओवगते कालमणवकखमाणे विहरति तत्थविय से एगे आसासे पन्नत्ते ४ । सू० ३१४ मूलार्थ:- चार प्रकारना वृक्ष कहेल छे, ते आ प्रमाणे- घणा पत्र ( पांदडां ) बाळं, घणा पुष्पवाळं, घणा फळवाळं अने छायावा. ए दृष्टांते चार प्रकारना पुरुषो कहेला हे, ते आ प्रमाणे- १ तथाविध उपकारने नहिं करनार पत्र सहित वृक्ष समान २ सूत्रदान विगेरेथी उपकार करनार ते पुष्प सहित वृक्ष समान, ३ अर्थदान विगेरेथी महान उपकार ते फल सहित वृक्ष समान अने ४ अनर्थथी रक्षण करनार ते छाया सहित वृक्ष समान. ( सू० ३१३ ) भार प्रत्ये वहन करनार पुरुषने चार विश्राम (वीसामा ) का छे, ते आ प्रमाणे- १ जे समये एक खभाथी लईने बीजा खभा उपर भारने मूके छे ते अवसरे तेने एक विश्राम कट्टेल छे, २ जे अवसरे भार उतारीने वडीनीत के लघुनीत करे छे ते अवसरे तेने एक विश्राम कहेल छे, ३ जे अवसरे नागकुमारना आवास (देवळ) मां अथवा सुपर्णकुमारना मंदिरमां रात्रिए वसे छे ते अवसरे तेने एक विश्राम कट्टेल छे अने ४ जे अवसरे भार उतारीने पोताने घेर यावज्जीव पर्यंत रहे छे ते अवसरे तेने एक विश्राम कहेल छे. ए दृष्टांत श्रमणोपासकने - सावद्यव्यापाररूप भारथी दबायेलाने चार विश्राम कहेला छे, ते आ प्रमाणे- १ जे अवसरे शील-सदाचार, अणुव्रत, For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *******-**** ४ स्थानकाध्ययने उद्देशः ३ पत्राद्युपगचतुर्भागिका आश्वास चतुष्कं सू० ३१३ १४ ।।। ४४७ ॥
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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