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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्थानानपत्र सानुबाद ॥४४६॥ ४ स्थानकाध्ययने उदेशः३ | क्रोधः + क्षिष्टान्तः ०३११ मनोज्ञ शब्दवडे संपन्न एक पक्षी छे परंतु मनोज्ञ रूपवडे संपन्न नथी-कोकिलनी जेम, २ रूपसंपन्न छे पण शन्दसंपन्न नथी-सामान्य शुक पोपट वत्, ३ उभयसंपन्न-मयूरवत् . ४ अनुभयसंपन्न-शब्दसंपन्न अने रूपसंपन्न पण नहिं-कागडानी जेम. अहिं पुरुष यथायोग्य योजबो, ते आ प्रमाणे-प्रिय बोलवावडे मनोज्ञ शब्द अने सुंदर वेषवडे रूपसंपन्न अथवा साधु, चोकस करल सिद्धांतमां प्रसिद्ध, शुद्ध धर्मदेशनादि खाध्यायना प्रबंधवाळो (शब्दसंपन्न), लोचवडे अल्प केशवाळू उत्तमांगपणुं अर्थात मस्तकनी सुंदरता, तपवडे कायानी कृशता, मेलबडे मलिन काया अने अल्प उपकरणपणुं विगेरे लक्षणबडे सुविहित साधुना रूपने धरनार ते रूपसंपन्न छे. 'पत्तियं' ति० स्वार्थिक 'क' प्रत्ययनुं ग्रहण करवामां पण प्रीति एज प्रीतिक, रूढिथी नपुंसकपणुं जाण. १ ९ प्रीति करुं अथवा हुं विश्वास करुं एवा परिणामवाळो थयो थको प्रीतिने अथवा विधासने करे छे, केम के स्थिर परिणामवाळो अथवा उचित प्रवृत्ति करवामां चतुर | के सौभाग्यवाळो होय छे. २ बीजो तो प्रीति करवामां परिणत थयो थको पण अग्रीतिने ज करे छ, केम के स्थिरपरिणामादि गुणथी विपरीत होय छे. ३ त्रीजो अप्रीतिमा परिणत थयो थको प्रीतिने ज करे छे, केम के उत्पन्न थयेला पूर्वना परिणामथी निवृत्त थवाथी अथवा बीजानी अप्रीतिनो हेतु छतां पण प्रीतिनी उत्पत्तिना स्वभाववाळो होबाथी प्रीतिने करे छे. ४ चोथो पुरुष तो सुगम छे. १ कोईक पुरुष भोजन, वस्त्रादिवडे पोताना आत्माने प्रीति-आनंद उत्पन्न करे छे, केमके स्वार्थमां तत्पर होवाथी | बीजाने आनंद उत्पन्न करतो नथी, २ बीजो परमार्थमां तत्पर होवाथी बीजाने आनंद आपे छे पण पोताने नहिं, ३ त्रीजो बन्ने(स्वपर)ने आनंद आपे छे, केम के स्वार्थ अने परमार्थ बन्नेमा तत्पर होय छे, तेमज ४ चोथो-खपरने आनंद उपजावतो ॥४४६॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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