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टीकार्थः-'चत्तारी'त्यादि. आ सूत्रनो आ प्रमाणे संबंध छे. पूर्वे चारित्र कडं, तेनो प्रतिबंध करनार क्रोधादि भाव छ, माटे क्रोधना स्वरूपनुं निरूपण करवा माटे आ सूत्र कहेवाय छे. आ प्रमाणे संबंधवाळा आ दृष्टांतभूत विगेरे सूत्रनी व्याख्या कराय छ-'राजी' रेखा. क्रोधनुं बाकीनुं व्याख्यान माया* विगेरेनी जेम जाणवू. मायादिना प्रकरण( विषय )थी अन्यत्र क्रोधनो विचार करवामां आवेल छे कारण के सूत्रनी गति विचित्र होय छे. बीजुं सूत्र पण सुगम छे. आक्रोध भावविशेष ज छ माटे भावनी प्ररूपणा करवा माटे दृष्टांत विगरे वे सूत्रने कहे छे-'चत्तारी त्यादि० प्रसिद्ध छे. विशेष ए के-जेमां खंचेल पग विगेरे खेंची न शकाय अथवा कष्टवडे खेंची शकाय ( काढी शकाय) ते कर्दम (कादव ). दीपक विगैरेनी मेशना जेवो पग विगेरेमा लेप करनार-चोटी जाय तेवो ते खंजन, कईम विशेष ज छे. वालुका(रेती) प्रसिद्ध छे, ते भींजेली पग विगेरेने लागी होय तो पण पाणी सूकाई जवाथी अल्प प्रयासे दूर थाय छे माटे अल्प लेप करनारी छे. शैल एटले कोमळ पाषाणो. ते पग विगेरेने स्पर्शवडे ज कंईक दुःख उपजावे छे, परंतु तथाविध लेपने उत्पन्न करता नथी. कादव विगेरेनी प्रधानताबाळा उदको ते कईमोदक विगेरे कहेवाय छे. जीवनो जे रागादि परिणाम ते भाव, तेनुं कईमोदक विगेरेनी साथे समानपणुं तेना स्वरूपने अनुसारे कर्मना लेपने अंगीकार करीने मान. (सू० ३११) हमणा ज भावनुं स्वरूप का, हवे भाववाळा दृष्टांत सहित पुरुषने 'चत्तारि पक्खी 'त्यादि. सूत्रथी लईने 'अत्यमियत्यमिये' ति. छेवटना सूत्रबडे कहे छे-तेनो भाव | स्पष्ट छे. विशेष ए के-शब्द अने रूप बधा पक्षीओने होय छे, अतः विशिष्ट शब्द अने रूप ग्रहण करवा योग्य छे. १रुत
* चोथा ठाणाना बीजा उद्देशकमा माया विगेरे त्रण कषायर्नु स्वरूप कहेल छे.
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