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श्रीस्थानाङ्गसूत्र
सानुवाद ॥ ४४५ ।।
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रूपसंपन्न, नथी अर्थात् काळों के कूबडो छे, कोईक रूपसंपन्न हे पण मनोज़ शब्दसंपन्न नथी, कोईक उभय संपन्न छे अने कोईक उभयसंपन्न नथी. चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे- १ कोईक पुरुष एम चिंतवे के हुं अमुकनी साथे प्रीति करूँ अने प्रीति पण करे छे, २ कोईक प्रथम एम चितवे के हुं आनी साथै प्रीति करूं पण पछी करे नहिं, ३ कोईक प्रथम एम चिंतवे के हुं अमुक साथे अप्रीति करूं पण पछी प्रीति करे छे, ४ कोईक एम चितवे के हुं आनी साथे अप्रति करुं अने अप्रीतिने करे छे. चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे- १ कोईक पुरुष भोजन विगेरेथी पोताना आत्माने आनंद उपजावे छे, पण बीजाने नहिं, २ कोईक बीजाने उपकार करे छे पण पोताने नहि केम के बीजा पर उपकार करवामां रसिक होय छे, ३ कोईक पोताने अने बजाने पण आनंद उपजावे छे अने ४ कोईक पोताने के परने पण आनंद उपजावतो नथी. चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-६ कोईक पुरुष एम चिंतवे के हुं परना चित्तमां प्रीति के विश्वास उपजावु अने तेमज विश्वास उपजावे छे, २ कोईक एम चिंतवे के हुं बजाने विश्वास उपजावं पण विश्वास उत्पन्न करी शके नहि, ३ कोईक एम चितवे के हुं विश्वास उपजावी शकीश नहि पण विश्वास उत्पन्न करे, अने ४ कोईक एम चितवे के हुं विश्वास उपजावी शकीश नहि अने उपजावे पण नहि. चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे- १ कोईक पुरुष पोताना आत्मामां विश्वास उपजावे छे, परंतु बीजाने विषे विश्वास उपजावतो नथी, २ कोईक, बीजाने विषे विश्वास उपजावे छे पण पोताना आत्मामां विश्वास उपजावतो नथी, ३ कोईक पुरुष पोताना तथा बीजाना आत्मामां पण विश्वास उपजावे छे अने ४ कोईक पोताना के परना आत्मामां विश्वास उपजावतो नथी. ( सू० ३१२ )
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४ स्थान काध्ययने
उद्देशः ३
क्रोधः पक्षिदृष्टा
न्तः सू० ३११-१२
॥ ४४५ ॥