SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ ४४५ ।। www.kobatirth.org रूपसंपन्न, नथी अर्थात् काळों के कूबडो छे, कोईक रूपसंपन्न हे पण मनोज़ शब्दसंपन्न नथी, कोईक उभय संपन्न छे अने कोईक उभयसंपन्न नथी. चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे- १ कोईक पुरुष एम चिंतवे के हुं अमुकनी साथे प्रीति करूँ अने प्रीति पण करे छे, २ कोईक प्रथम एम चितवे के हुं आनी साथै प्रीति करूं पण पछी करे नहिं, ३ कोईक प्रथम एम चिंतवे के हुं अमुक साथे अप्रीति करूं पण पछी प्रीति करे छे, ४ कोईक एम चितवे के हुं आनी साथे अप्रति करुं अने अप्रीतिने करे छे. चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे- १ कोईक पुरुष भोजन विगेरेथी पोताना आत्माने आनंद उपजावे छे, पण बीजाने नहिं, २ कोईक बीजाने उपकार करे छे पण पोताने नहि केम के बीजा पर उपकार करवामां रसिक होय छे, ३ कोईक पोताने अने बजाने पण आनंद उपजावे छे अने ४ कोईक पोताने के परने पण आनंद उपजावतो नथी. चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-६ कोईक पुरुष एम चिंतवे के हुं परना चित्तमां प्रीति के विश्वास उपजावु अने तेमज विश्वास उपजावे छे, २ कोईक एम चिंतवे के हुं बजाने विश्वास उपजावं पण विश्वास उत्पन्न करी शके नहि, ३ कोईक एम चितवे के हुं विश्वास उपजावी शकीश नहि पण विश्वास उत्पन्न करे, अने ४ कोईक एम चितवे के हुं विश्वास उपजावी शकीश नहि अने उपजावे पण नहि. चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे- १ कोईक पुरुष पोताना आत्मामां विश्वास उपजावे छे, परंतु बीजाने विषे विश्वास उपजावतो नथी, २ कोईक, बीजाने विषे विश्वास उपजावे छे पण पोताना आत्मामां विश्वास उपजावतो नथी, ३ कोईक पुरुष पोताना तथा बीजाना आत्मामां पण विश्वास उपजावे छे अने ४ कोईक पोताना के परना आत्मामां विश्वास उपजावतो नथी. ( सू० ३१२ ) For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ स्थान काध्ययने उद्देशः ३ क्रोधः पक्षिदृष्टा न्तः सू० ३११-१२ ॥ ४४५ ॥
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy