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पर्यंत रहे, पृथिवीनी रेखा समान क्रोध-बार मास पर्यंत रहे, वालुकानी रेखा समान क्रोध-चार मास पर्यंत रहे अने उदकनी रेखा समान क्रोध - एक पक्षपर्यंत रहे. पर्वतनी रेखा समान अनंतानुबंधी क्रोधमां प्रविष्ट थयेल जे जीव काळ करे छे ते नारकोमां उत्पन्न थाय छे, पृथिवीनी रेखा समान अप्रत्याख्यानी क्रोधमां प्रविष्ट थयेल जे जीव काळ करे छे ते तिर्यंचयोनिकोमां उत्पन्न थाय छे, वालुकानी रेखा समान प्रत्याख्यानी क्रोधमां प्रविष्ट थयेल जे जीव काळ करे हे ते मनुष्योमां उत्पन्न थाय छे अने उदकनी रेखा समान संज्वलन क्रोधमां प्रविष्ट थयेल जे जीव काळ करे छे ते देवोमां उत्पन्न थाय छे. चार प्रकारे उदक-पाणी कहेल छे, ते आ प्रमाणे - कादववाळं पाणी, खंजन- मेश जेतुं पाणी, धूळवाडं पाणी अने कांकरावाळं पाणी. आ दृष्टांते चार प्रकारना भाव (जीवना परिणाम) कहेला छे, ते आ प्रमाणे-कर्दम उदक समान, खंजन उदक समान, वालुका उदक समान अने शैल उदक समान. कर्दम उदक समान भाव (परिणाम) ने प्राप्त थयेल जे जीव काळ करे छे ते नैरयिकोने विषे उत्पन्न थाय छे, खंजन उदक समान भावने प्राप्त थयेल जे जीव काळ करे छे ते तिर्यचयोनिको मां उत्पन्न थाय छे, वालुका उदक समान भावने प्राप्त थयेल जे जीव काळ करे छे ते मनुष्योने विषे उत्पन्न थाय छे अने शैल उदक समान भावने प्राप्त थयेल जे जीव काळ करे छे देवाने विषे उत्पन्न थाय छे. ( सू० ३११ ) चार प्रकारना पक्षी कहेला छे, ते आ प्रमाणे- कोई एक पक्षी शब्दसंपन्न - मनोहर स्ववाळो छे पण रूपसंपन्न नथी- कोकिलनी जेम, कोईक रूपसंपन छे पण शब्दसंपत्र नथी ( मनोहर शब्द नथी ) - अभण पोपटनी जेम, कोईक पक्षी शब्दसंपन्न छे अने रूपसंपन्न पण छे-मोरनी जेम, कोईक शब्दसंपन्न पण नथी अने रूपसंपन्न पण नथी - कागडानी जेम, आ दृष्टांते चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे- कोईएक पुरुष मिष्ट वचनसंपन्न के पण
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