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श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद
४ स्थानकाध्ययने उद्देशः २ नन्दीश्वरा
धिकारः सू० ३०७
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नंदापुष्करणीओ कहेली छे, ते आ प्रमाणे-भद्रा, विशाला, कुमुदा अने पोंडरकिणी. ते नंदा पुष्करणीओ एक लाख योजन लांबी छे. बाकीचें वर्णन पूर्ववत् जाणवु यावत् दधिमुखपर्वतो यावत् वनखंडो छे. त्यां जे पश्चिम दिशानो अंजनक पर्वत छ तेनी चार दिशामा चार नंदा पुष्करणीओ कहेली छे, ते आ प्रमाणे-नंदिषेणा, अमोघा, गोस्तूपा अने सुदर्शना. बीजं पूर्वनी जेम जाणवू. तेज प्रमाणे दधिमुख पर्वतो, ते ज प्रमाणे सिद्धायतनो अने यावत् वनखंडो छे. त्यां जे उत्तर दिशामां अंजनक पर्वत छे तेनी चार दिशामा चार नंदा पुष्करणी कहेली छे, ते आ प्रमाणे-विजया, वैजयंती, जयंती अने अपराजिता. ते पुष्करणीओ एक लाख योजन लांबी छ, पहोळाई विगेरे पूर्वोक्त प्रमाणे छे, तेमज दधिमुख पर्वतो, सिद्धायतनो यावत् वनखंडो कहेला छे. नंदीश्वरवर द्वीपना चक्रवाल विष्कंभना बहुमध्यदेशभागमां चार विदिशाओने विषे चार रतिकर पर्वतो कहेला छे, ते आ प्रमाणे| ईशानकोणमां रतिकर पर्वत, अग्निकोणमा रतिकर पर्वत, नैऋतकोणमा रतिकर पर्वत अने वायव्य कोणमा रतिकर पर्वत छे. ते रतिकर पर्वतो एक हजार योजन ऊंचा, एक हजार गाउ जमीनमां ऊंडा, सर्वत्र समान, झालरने आकारे रहेला छे. दश हजार योजनना पहोळा अने एकत्रीश हजार, छ सो त्रेवीश योजननी परिधिवाळा छे. सर्वरत्नमय स्वच्छ यावत् दरेकने जोवालायक छे. त्यांजे ईशानकोणमां रतिकर पर्वत छे तेनी चारे दिशाए ईशानेंद्र, देवना राजानी चार अग्रमहिषीओनी जंबूद्वीप प्रमाण (एक लाख योजननी) चार राजधानीओ कहेली छे, ते आ प्रमाणे-नंदुत्तरा, नंदा, उत्तरकुरा अने देवकुरा नामनी छे. ते अनुक्रमे कृष्णा, कृष्णराजी, रामा अने रापरक्षिता नामनी इंद्राणीओ संबंधी छे. त्यां जे अग्निकोणमां रतिकर पर्वत छे तेनी चारे दिशामां शक्र नामना देवेंद्र, देवना राजानी चार अग्रमहिषीओनी जंबूद्वीपना प्रमाण जेवडी चार राजधानीओ कहेली छे, ते आ प्रमाणे
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