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वृक्षो कहेला छे. ते चैत्यवृक्षोनी आगळ चार मणिपीठिकाओ कहेली छे. ने मणिपीठिकाओनी उपर चार महेंद्र( मोटा इंद्र )ध्वजो कहेला छे. ते महेंद्रध्वजोनी आगळ चार नंदा पुष्करणी (वावडी विशेष ) कहेली छे. ते दरेक पुष्करणीओनी चारे दिशाओने विषे चार बनखंडो कहेला छे. ते आ प्रमाणे-पूर्वनो वनखंड, दक्षिणनो वनखंड, पश्चिमनो वनखंड अने उत्तरनो वनखंड, पूर्वमा अशोकवन, दक्षिणमा सप्तच्छदवन, पश्चिममा चंपकवन अने उत्तरमा आम्रवन छे. तेमा जे पूर्वदिशानो अंजनक पर्वत छे तेनी चारे दिशामा चार नंदा पुष्करणी कहेली छे, ते आ प्रमाणे-नंदोत्तरा, नंदा, आनंदा अने नंदिवर्द्धना. ते नंदा पुष्करणीओ एक लाख योजन लांबी, पचास हजार योजन पहोळी अने एक हजार योजन ऊंडी छे. ते प्रत्येक पुष्करणी
ओनी चार दिशाओमा त्रण सोपान प्रतिरूपको छे अर्थात् एक द्वार प्रत्ये नीकळवा अने आववा माटे त्रण दिशानी सन्मुख पगथियानी त्रण पंक्तिओ छे. ते त्रण सोपान प्रतिरूपकोनी आगळ चार तोरणो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-पूर्वमा, दक्षिणमां, पश्चिममा अने उत्तरमां. ते प्रत्येक पुष्करणीनी चार दिशाए चार वनखंडो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-पूर्वमा, दक्षिणमा, पश्चिममा अने उत्तरमा पूर्वमा अशोकवन यावत् उत्तरमा आम्रवन छे. ते पुष्करणीओना बहुमध्यदेशभागमा चार दधिमुख पर्वतो कहेला छे. ते दधिमुख पर्वतो चारे दिशामा चोसठ हजार योजन ऊंचा, एक हजार योजन जमीनमा ऊडा, सर्वत्र समान, पालाने आकार रहेला, दश हजार योजन पहोळा, एकत्रीश हजार, छ सो नेत्रेवीश योजननी परिधिवाळा छे. वळी सर्व रत्नमय, स्वच्छ यावत् प्रतिरूप छे. ते दधिमुख पर्वतोनी उपर बहुसम रमणीयभूमिभागो कहेला छे. बाकीनुं वर्णन जेम अंजनक पर्वतोनुं कयु छे तेमज सघल्लं वर्णन आ दधिमुख पर्वतोनुं पण कहेवू, यावत् आम्रवन उत्तर दिशामां छे. त्यां जे दक्षिण दिशानो अंजनक पर्वत छे तेनी चारे दिशामा चार
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