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अहिं पण कषाय अने योगरूप परिणाम अथवा आरंभ ए उपक्रम छे. प्रकृति, उपशमन अने उपक्रम विगेरे चारे उपक्रमो. * सामान्य उपशमनरूप उपक्रमना अनुसार जाणवा. प्रकृति विपरिणामना उपक्रम विगेरे पण सामान्य विपरिणामनारूप उपक्रम
ना लक्षण अनुसारे समजवा योग्य छे. प्रकृतिपणादिवडे पुद्गलोने परिणामवावडे समर्थ जीवनुं वीर्य ते उपक्रम. 'अप्पावहात्तिक अल्प-थोडं अने बह-घणुते अल्पबहुति बन्नेना भाव ते अल्पबहुत्व छे.अहिं दीर्घपणुं अने असंयुक्तपणुं प्राकृतशैलीने अंग छे.प्रकृतिना विषयवालं अल्पबहत्व,बंधादिनी अपेक्षाए छ. जेम सवेथी थोडी प्रकृतिनो बंधक उपशांतमोहादिक छ,कम के ते एकविध बंधक छे. (एक सातावदनीय बांधे छ) बहुतर-अधिक प्रकृतिबंधक, उपशमक विगेरे सूक्ष्मसंपरायवालो छे केम के ते छ प्रकारना बंधक छे. ( आयष्य अने मोहनीय सिवाय छ ) तेथी अधिक बंधक सप्तविधबंधक अने तेथी अधिक बंधक आटे प्रकृतिने बांधनार छ.
स्थितिना विषयवा अल्पब हुत्व आ प्रमाणे-" सवत्थावो संजयस्स जहन्नओ ठिइबंधो, पगंदियवापरपज्जत्तगरम जहन्नओ ठिबंधो असंखेज्जगुणी । " इत्यादि संयत- *नवमा गुणठाणावाला मुनि विगैरनो सर्वथी थोडी जघन्यथी कर्मनी स्थितिनो बंध होय छे तेथी बादरपर्याप्त Xएकेद्रियने जघन्यथी असंख्यातगुणों कर्मनी स्थितिना बंध होय हे इत्यादि."
अनुभागर्नु अल्पबहुत्व आ प्रमाण-" सबस्थोवाई अणंतगुणवुड्डिठाणाणि, असंखाजगुणवुडिठाणाणि अ* साधुने पण आठना गुणठाणा सुधी अंत:कोटाकोटी सागरेपमधी ओछे। कर्मबंध नथी. x कमनी स्थिति,ध विगेरेनु स्वरूप पंचम कर्मग्रंथाविधी जाणत्रा येोग्य छे.
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