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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie भीस्थानागपत्र सानुबाद ॥४१७॥ ४स्थानकाभ्ययने उद्देशः २ प्रकृतिव न्धादि सू० २९६ नदी संबंधी पत्थरना न्याये अथवा द्रब्यक्षेत्रादिके करण(जीवनी शक्तिविशेष)बडे बीजी अवस्थाचे पमाडवं ते विपरिणामना. |x अहिं विपरिणामना बंधनादिने विषे अने तेथी अन्य उदयादिने विषे होय छे ते सामान्यरूप होवाथी विपरिणामना जुदी कही है. बंधनोपक्रम-बंधनकरण चार प्रकारे छे. तेमां प्रकृतिबंधननो उपक्रम जीवनो योगरूप परिणाम छे, केम के योग ए प्रकृतिबंधना हेतु होय छे. स्थितिबंधननो उपक्रम ते ज अर्थात् जीवनो परिणाम छे, परंतु ते कपायरूप परिणाम छ केम के | स्थितिनो कपाय हेत होय छे. अनुभागबंधनना उपक्रम पण परिणाम ज छे परंतु ते कपायरूप छ. प्रदेशबंधनन। उपक्रम तो तेज योगरूप परिणाम छ. का छे के--"जोगा पयडिपएस,ठिइअणुभागं कसायओ कुणई" इति जीव योगथी प्रकृतिबंध अने प्रदेशबंध करे छ तथा कषायथी स्थितिबंध अने अनुभागबंध करे छे." अथवा प्रकृति विगरे बंधनोना [ अंतमहतन्यन अंतःकोटीकोटी सागरोपमरूप] आरंभो ते उपक्रमो.एवी रीते बीजा उपक्रमोमां पण जाणवू. जे मूलप्रकृति अथवा प्रतिमा दलिया प्रत्ये, जीवना बीयविशेषवडे आकपी ने उदयमां प्राप्त कराय छे ते प्रकृतिउदीरणा, जे उदयमां आवेल स्थितिनी साथै वीर्यथी ज उदयमां नहिं आवेल स्थितिने अनुभवाय छे ते स्थितिउदीरणा, उदयमां आवेल रसनी साथे अप्राप्त ( उदयमां नहिं आवेल ) रसने ( वीर्यबडे आकपीने ) जे भोगवाय छे ते अनुभागउदीरणा. तथा उदयमा आवेल नियत परिमाणवाळा कर्मप्रदशांनी साथे अप्राप्त-उदयमां नहिं आवेल नियत परिमाणवाळा कमप्रदेशोनुं जे भोगव ते प्रदेशउदीरणा. " आन्तमहिनौनान्तः कोटीकोटीरूपा। " एबो पाठ आगमोदय ममितिवाळी प्रतमा नयो, बाबुवाको प्रतमा छे, माटे तेटलो भाग काटखूणा कौंसमा लखेल छे. ॥४१७॥ KXXXXXX For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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