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भीस्थानागपत्र सानुबाद ॥४१७॥
४स्थानकाभ्ययने उद्देशः २ प्रकृतिव
न्धादि
सू० २९६
नदी संबंधी पत्थरना न्याये अथवा द्रब्यक्षेत्रादिके करण(जीवनी शक्तिविशेष)बडे बीजी अवस्थाचे पमाडवं ते विपरिणामना. |x अहिं विपरिणामना बंधनादिने विषे अने तेथी अन्य उदयादिने विषे होय छे ते सामान्यरूप होवाथी विपरिणामना जुदी कही है. बंधनोपक्रम-बंधनकरण चार प्रकारे छे. तेमां प्रकृतिबंधननो उपक्रम जीवनो योगरूप परिणाम छे, केम के योग
ए प्रकृतिबंधना हेतु होय छे. स्थितिबंधननो उपक्रम ते ज अर्थात् जीवनो परिणाम छे, परंतु ते कपायरूप परिणाम छ केम के | स्थितिनो कपाय हेत होय छे. अनुभागबंधनना उपक्रम पण परिणाम ज छे परंतु ते कपायरूप छ. प्रदेशबंधनन। उपक्रम तो तेज योगरूप परिणाम छ. का छे के--"जोगा पयडिपएस,ठिइअणुभागं कसायओ कुणई" इति जीव योगथी प्रकृतिबंध अने प्रदेशबंध करे छ तथा कषायथी स्थितिबंध अने अनुभागबंध करे छे." अथवा प्रकृति विगरे बंधनोना [ अंतमहतन्यन अंतःकोटीकोटी सागरोपमरूप] आरंभो ते उपक्रमो.एवी रीते बीजा उपक्रमोमां पण जाणवू. जे मूलप्रकृति अथवा प्रतिमा दलिया प्रत्ये, जीवना बीयविशेषवडे आकपी ने उदयमां प्राप्त कराय छे ते प्रकृतिउदीरणा, जे उदयमां आवेल स्थितिनी साथै वीर्यथी ज उदयमां नहिं आवेल स्थितिने अनुभवाय छे ते स्थितिउदीरणा, उदयमां आवेल रसनी साथे अप्राप्त ( उदयमां नहिं आवेल ) रसने ( वीर्यबडे आकपीने ) जे भोगवाय छे ते अनुभागउदीरणा. तथा उदयमा आवेल नियत परिमाणवाळा कर्मप्रदशांनी साथे अप्राप्त-उदयमां नहिं आवेल नियत परिमाणवाळा कमप्रदेशोनुं जे भोगव ते प्रदेशउदीरणा.
" आन्तमहिनौनान्तः कोटीकोटीरूपा। " एबो पाठ आगमोदय ममितिवाळी प्रतमा नयो, बाबुवाको प्रतमा छे, माटे तेटलो भाग काटखूणा कौंसमा लखेल छे.
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