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श्रीस्था
नाङ्गसूत्र
सानुवाद ॥ ४१० ॥
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मूलार्थ:- चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे- कोईएक गच्छमां रहेल साधु, अगीतार्थ समक्ष दोपने सेवे छे ते संप्रगटप्रतिसेवी, कोईएक प्रच्छन्न दोपने सेवे छे, कोईएक वस्त्र अने शिष्यादिना लाभवडे जे आनंदने पामे छे ते प्रत्युत्पन्न - नंदी, कोईएक गच्छमांथी पोतानो के शिष्यादिना नीकळवावडे जे आनंदित थाय छे निःसरणनंदी (१), चार प्रकारनी सेना कहेली छे, ते आ प्रमाणे एक सेना शत्रुने जीतनारी छे पण पराजय पामे नहि, एक सेना शत्रुथी पराजय पामनारी छे पण जीतनारी नथी, एक सेना जीतनारी पण छे अने पराजय पामनारी पण छे तेमज एक सेना जीतनारी पण नहि अने पराजय पामनारी पण नहि (२), आ दृष्टांते चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे - कोईएक साधु परीपहनी सेनाने जीतनार छे परंतु तेथी श्रीमहावीरस्वामीनी जेम पराजय पामनार नथी, एक साधु परीपहथी पराभव पामनार छे पण कंडरीकवत् जीतनार नथी, एक साधु जीतनार पण छे अने शैलक राजर्षिवत् पराजय पामनार पण छे तेमज एक साधु जतिनार पण नथी अने पराजय पण पामनार नथी-जेने परीपह उत्पन्न थयेल नथी ते (३), चार प्रकारनी सेना कहेली छे, ते आ प्रमाणे- एक सेना एक वखत शत्रुने जीतीने फरीधी पण जीते छे, एक सेना प्रथम जीतीने फरीथी पराजय पामे छे, एक सेना प्रथम पराजय पामीने पछी जीते छे तेमज एक सेना प्रथम पण पराजय पामीने पछी पण पराजय पामे छे (४). आ दृष्टांते चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे- कोईएक साधु प्रथम परीपहने जीतीने पछी पण परीपहने जीते छे, कोईक प्रथम जीतीने पछी हारे छे, कोईक प्रथम हारीने पछी जीते छे तेमज कोईक प्रथम पण हारे छे ने पछी पण हारे छे ( ५ ) ( सू० २९२ ) टीकार्थ :- आ सूत्रो सुगम छे. विशेष ए के कोईएक-गच्छमा रहेल साधु, संप्रकट अगीतार्थनी आगळ मूलगुणो अ
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४ स्थान
काध्ययने
उद्देशः २
प्रकटसे
व्यादि
सू० २९२
॥ ४१० ॥