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'तमुकाये ण' मित्यादि० सूत्र कहेवायेल अर्थवालं छे, परंतु सौधर्मादि देवलोकने आ तमस्काय आवरीने रहेल छे अने ते कूकडाना पांजराना आकारे रहल छे. तेना प्रतिपादन माटे कयुं छे के-" तमुक्काए णं भंते ! किं संठिए पन्नत्ते ? गोयमा! अहे मल्लगमूलसंठिए उप्पि कुक्कुडपंजरसंठिए पन्नत्ते । "हे भगवन् ! तमस्काय केवा आकारे रहेल छे ? उत्तर-हे गौतम ! नीचे मल्लकमूल-सरावलाना मूलना आकारे अने उपर कूकडाना पांजराना आकारे रहेल छे. (सू० २९१)
हमणां वचनना पर्यायवडे तमस्काय कह्यो, हवे अर्थपर्यायवडे पुरुष प्रत्ये निरूपण करनार पांच सूत्रो सूत्रकारवडे कहेवाय छ
चत्तारि पुरिसजाता पं० तं०-संपागडपडिसेवी णाममेगे, पच्छन्नपडिसेवी णाममेगे, पडुप्पन्ननंदी नाममेगे, णिस्सरणणंदी णाममेगे ४ (१), चत्तारि सेणाओ पं० सं०-जतित्ता णाममेगे णो पराजिणित्ता, पराजिणित्ता णाममेगे णो जतित्ता, एगा जतित्तावि पराजिगित्तावि,एगा नो जतित्ता नो पराजिणित्ता ४ (२).एवामेव चत्तारि पुरिसजाता पं० सं०-जतित्ता नाममेगे नो पराजिणित्ता ४ (३). चत्तारि सेणाओ पं०२०-जतित्ता णामं एगा जयई.जइत्ताणाममेगा पराजिणति, पराजिणित्ता णाममेगा जयति, पराजिणित्ता नाममेगा पराजिणति ४ (४), एवामेव चत्तारि पुरिसजाता पं००जइत्ता नाममेगे जयति ४ (५) सु० २९२
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