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भीस्थानारपत्र सानुवाद ॥४०७॥
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वर्तनवाळो छ पण प्रतिकूल स्वभाववाळो छे तेमज कोईक पुरुष अनुकूल स्वभाव अने अनुकूल वर्तनवालो छे (१७) सू०२८९).
टीकार्थ:-आ सूत्रो स्पष्ट छे, मात्र ‘निषेध थाओ' एम जे कहे छे ते 'अलमस्तु' कहेवाय छे अर्थात् निषेधक, ते दुष्ट कार्योमा प्रवर्तमान आत्मानो-पोतानो निषेध करनार, अथवा 'अलमंथुत्ति० सिद्धांतनी भाषावडे ' समर्थ' कहेवाय छे. तेथी कोईएक पोतानो निग्रह करवाभां समर्थ १, एक मार्ग शरूआतमां पण सरळ अने अंतमां पण सरळ छे अथवा सरळ जणाय छ अने तत्वथी पण सरळ २, पुरुष तो पूर्व अने उत्तरकालनी अपेक्षाए सरळ छे अथवा अंतःकरणनी अने बाह्य स्वरूपनी अपेक्षाए सरळ छे. क्यांक तो 'उज्जूनामं एगे उज्जूमणे' त्ति० पाठ छे ते पण बाह्य स्वरूप अने अंतर स्वरूपनी अपेक्षाए व्याख्या करवा योग्य छ ३, कोईएक मार्ग शरूआतमा निरुपद्रव होवावडे क्षेम छे, बळी छेवटमां पण क्षेम छे अथवा प्रसिद्धि-जाहेर अने तत्त्वथी क्षेम छे ४. एम पुरुष पण क्रोध विगेरेना उपद्रवथी रहित होवाथी क्षेम छ ५, भावथी उपद्रवना अभाववडे क्षेम अने आकार-देखाववडे सुंदर मार्ग ६, प्रथम पुरुष तो भावलिंग-साधुना गुणयुक्त अने द्रव्यलिंग-साधुना वेषयुक्त, बीजो कारणथी द्रव्यलिंग रहित गुण युक्त साधु ज, बीजो निव, चोथो अन्यतीर्थिक अथवा गहस्थ ७, शंबुको-शंखो वाम पडखे व्यवस्थित (रहेल) होवाथी अथवा प्रतिकूळ गुणवाळो होवाथी वाम, वामावर्त प्रसिद्ध छे. एम दक्षिणावर्त पण जाणवो. दक्षिण-दक्षिण भागमा स्थापन करवाथी अथवा अनुकूळ गुणवालो होवाथी ८, पुरुष तो प्रतिकूल स्वभाववडे बाम, वाम ज जे वर्ते छे ते वामावर्त, केम के विपरीत प्रवृत्ति करवाथी एक, बीजो स्वभावथी विपरीत अने कारणवशात् दक्षिणावक-अनुकूल प्रवृत्ति करनार, श्रीजो तो अनुकूल स्वभाववडे दक्षिण परंतु कारणवशात् वामावर्त-प्रतिकूल प्रवृत्ति करनार, एम चोथो स्व
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४ स्थान काभ्ययने उद्देशः २ पुरुषाणामलमस्त्वादिचतुभंगी सू०२८९
॥ ४०७॥
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