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भावथी अने प्रवृत्तिधी पण अनुकूल जाणवो ९, धूमशिखा वामभागमां रहेवावडे अथवा प्रतिकूल स्वभाववडे बामा, अ वाम - डावा भागथी घूमरी फरे छे ते वामावर्ती १०, स्त्रीनी व्याख्या पुरुषनी माफक करवी, अहिं शंखनुं दृष्टांत होवा छतां पण धूमशिखा विगेरे दृष्टांतोनुं स्त्रीरूप दाष्टतिकोने विषे शब्दना समानपणाथी विशेष युक्त होवाथी भेदवडे स्वीकारेल छे ११, एम अग्निशिखानी व्याख्या पण जाणवी १२-१३, वातमंडलिका - घूमरीवडे ऊंचो जतो वायु, अहिं स्त्रीओ, मलिनता, उपताप अने चपलताना स्वभाववाली होय छे. आ अभिप्राय वडे स्त्रीओना विषयमां धूमशिखा विगेरे त्रण दृष्टांतो उपन्यास करेल छे. कधुं छे के
चला मइलणसीला, सिणेह परिपूरियावि तावेई । दीवयसिहव्त्र महिला, लध्धप्पसरा भयं देइ ॥९२॥
दीपकनी शिखानी जेम स्त्री भयने आपे छे, ते स्त्री चपल स्वभाववाळी, मलिनताने करनारी, स्नेहथी पूरायेली - प्रेमपात्र करायली छतां पण संतापन कर छे तेमज अवसर मळवाथी स्वच्छंदचारिणी होय छे. १४-१५
वनखंड तो शिखानी माफक जाणवुं, विशेष ए के वाम वलणवडे उत्पन्न थवाथी अथवा वायुवडे वाम कंपमान थवाथी वामावर्त १६. पुरुषना विषयमां पूर्वनी माफक जाणवुं १७. ( सू० २८९ ).
हमणां ज अनुकूल स्वभाव अने अनुकूल प्रवृत्तिवालो पुरुष कह्यो, एवा प्रकारनो निग्रंथ, सामान्यवडे अनुचित प्रवृत्तिमां पण पोताना आचारने उल्लंघतो नथी एम दर्शावतां थका सूत्रकार कहे छे के—
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