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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ना भवनो अंत करे छे ते परांतकर परंतु पोताना भवनो अंत करतो नथी ते अचरमशरीरी आचार्य विगेरे २, श्रीजा भांगावाळा तीर्थंकर अथवा अन्य - चरमशरीरी आचार्य विगेरे ३ अने चोथा भांगावाला दुष्पम कालना आचार्य विगेरे ४. अथवा पोताना मरण करे छे ते आत्मांतकर. एवी रीते बीजानुं मरण करे छे ते परांतकर, अहिं प्रथम भांगावाळो आत्मवधक, बीजा भांगावाळो परवधक, त्रीजो उभयवधक अने चोथो तो बन्नेनो अवधक जाणवो. अथवा पोते स्वतंत्र थको जे कार्यों आतंक, एमज परतंत्र थको कार्यने करे ते परतंत्रकर. अहिं प्रथम भंगमां जिन, बीजा भंगमां भिक्षु, श्रीजा भंगमां आचार्यादि अने चोथा भंगमां कार्यविशेषनी अपेक्षाए शठ- ठगारो. अथवा धन अने गच्छादिने पोताने स्वाधीन करे छे ते आत्मतंत्रकर, एवी रीते बीजा मांगा पण स्वयं विचारी लेवा. आत्माने खेद करे छे ते आत्मतम - आचार्यादि, पर-शिष्यादिकने खेद करावे छे ते परतम (अहिं सर्वत्र प्राकृतशैलीथी अनुस्वार जाणवो. ) अथवा आत्माने विषे तम (अज्ञान अथवा क्रोध) जेने छे ते आत्मतम. एवी रीते बीजा+भांगामां पण जाणवुं तथा आत्माने दमे छे - समतावाळो करे छे अथवा शिक्षा आपे छे ते आत्मदम- आचार्य अथवा अश्वनो दमक - स्वार, एम बीजा भांगाओ पण जाणवा, पर-शिष्य अथवा घोडा विगेरेने जे दमे छे ते परदम ( सू० २८७) गर्दा करवा योग्य कार्यनी गर्हा करवाथी दम थाय छे माटे गर्दा सूत्र कहे छे. गुरुनी साक्षीपूर्वक आत्मानी निंदा ते गर्दा ' उपसंपद्ये' पोताना दोषनुं निवेदन करवा माटे गुरुनो आश्रय करूं, अथवा उचित - प्रायश्चित्तनो स्वीकार करूं आवा प्रकारना परिणामरूप एक गर्दा छे. गहना + अन्य आत्माना संबंधमां जेने अज्ञान के क्रोध छे ते परतम. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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