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वातं कहता सम्मावतं ठावतित्ता भवति ४, संवेगणी कथा चउव्विहा पं० तं० - इहलोगसंवेगणी परलोग संवेगणी आतसरीरसंवेगणी परसरीरसंवेगणी, णिव्वेगणीकहा चउव्विहा पं० तं० - इहलोगे दुचिन्ना कम्मा इहलोगे दुहफलविवागसंजुत्ता भवंति ९, इहलोगे दुच्चिन्ना कम्मा परलोगे दुइफलविवागसंजुत्ता भवति २, परलोगे दुच्चिन्ना कम्मा इहलोगे दुइफल विवागसंजुत्ता भवंति ३, परलोगे दुश्च्चिन्ना कम्मा परलोये दुहफल विवागसंजुत्ता भवंति ४, इहलोगे सुचिन्ना कम्मा इहलोगे सुहफल विवागसंजुत्ता भवति १, इद्दलोगे सुश्च्चिन्ना कम्मा परलोगे सुहफल विवागसंजुत्ता भवंति २, एवं चउभंगो ४ । सू० २८२
मूलार्थ:- चार विकथाओ कहेली छे, ते आ प्रमाणे- स्त्रीकथा, भक्तकथा, देशकथा अने राजकथा. स्त्रीकथा चार प्रकारे कहेली छे, ते आ प्रमाणे- स्रीनी ब्राह्मणी विगेरे जाति संबंधी कथा, स्त्रीना कुल संबंधी कथा एटले आ उत्तम कुलनी छे इत्यादि, स्त्रीना रूप संबंधी कथा - आ त्रीनुं रूप सारुं छे विगेरे, स्त्रीना नेपथ्य (वेप) संबंधी कथा १, भक्त-भोजन संबंधी कथा चार प्रकारे कहेली छे, ते आ प्रमाणे - आवापकथा-अमुक रसवतीमां अमुक शाक, घृत विगेरे चीजो जोईए, निर्वापकथा-आटला पक्वान्नना भेदो अने आटला व्यंजनना भेदो उपयोगमां आवे छे, भोजनना आरंभनी कथा - आ रसवतमां आटला द्रव्यो- पदार्थों जोईए, भोजनना निष्टाननी कथा - आटला पैसानो खर्च आ रसोईमां थाय छे २, देशकथा चार प्रकारे कहेली छे, ते आ प्रमाणे- देशविधि
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