________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मीस्थानास्त्र सानुवाद ॥ ३९३ ॥
४ स्थान काध्ययने उद्देशः २
कथा: सू०२८२
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
अने संकीर्ण जातिनो हाथी सर्वांगथी हणे छे. (सू० २८१) ___हमणां ज संकीर्ण जातिनो अने संकीर्ण मनवाळो कहेल छ, एमां मननुं स्वरूप का छे, हवे वचननुं स्वरूप कहेवा माटे विकथा अने कथाना प्रकरणने कहे छे
चत्तारि विकहातो पं० २०-इथिकहा भत्तकहा देसकहा रायकहा, इथिकहा चउब्विहा पं० तं०-इत्थीणं जाइकहा इत्थीणं कुलकहा इत्थीणं रूवकहा इत्थीणं णेवस्थकहा, भत्तकहा चउविहा पं० तं-भत्तस्स आवावकहा भत्तस्स निव्वावकहा भत्तस्स आरंभकहा भत्तस्स निढाणकहा, देसकहा चउव्विहा पं० तं०-देसविहिकहा देसविकप्पकहा देसच्छंदकहा देसनेवस्थकहा, रायकहा चउव्विहा पं० तं-रन्नो अतिताणकहा रन्नो निजाणकहा रन्नो बलवाहणकहा रन्नो कोसकोट्ठागारकहा, चउठिवहा धम्मकहा पं० २०-अवखेवणी विवखेवणी संवेयणी निव्वेगणी, अवखेवणी कहा चउव्विहा पं० तं०-आयारअवखेवणी, ववहारअवखवणी पन्नत्तिअवखेवणी दिट्टिवातअक्खेवणी, विवखवणी कहा चउब्विहा पं० तं०-ससमयं कहई, ससमयं कहित्ता परसमयं कहेइ १, परसमयं कत्ता ससमयं ठावतित्ताभवति २,सम्मावातं कहेइ सम्मावातं कहेत्ता मिच्छावातं कहेइ ३, मिच्छा
xxxxxx Kxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
For Private and Personal Use Only