________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
स्वरूपवाळा मानवा. भद्रादिना लक्षण आप्रमाणे- 'महु' गाथा - मवनी गोळीनी माफक पिंगळ नेत्र छे जेना ते मधुविंग नेत्रवाळ, अनुपूर्व वडे - परंपरावडे सारी रीते उत्पन्न शयेल ते अनुपूर्व सुजात, पोतानी जातिने उचित काळना क्रमयी थपेल बल अने रूपादि गुणयुक्त थाय छे ते लांबा पूंछडावाळो होय छे. अथवा अनुक्रमगडे-स्थूल सूक्ष्म अने अतिसूक्ष्म स्वरूपवडेसारी रीते थयेल लांबू पूंछड छे जेतुं ते दीर्घ पूंछडावाळो हाथी. मस्तकना अग्रभागमा उन्नत छे तथा धीर- डरनार नहीं, वळी वधा अंगो योग्य प्रमाणवाळा अने लक्षणयुक्तपणावडे व्यवस्थित छे जेना ते सर्वांगसमाहित भद्र नामवाळो हाथी विशेष छे ॥ १ ॥ 'चल' गाहा-चल-शिथिल, बहुल-स्थूल अने विषम-लीलरी सहित चर्म छे जेनुं ते चलबहुलविषमचर्म, स्थूल मस्तकवाळो स्थूल 'पेपण'ति० पूंछडाना मूलपडे युक्त, स्थूल नख, दांत अने केशवाळी, सिंहनी माफक पिंगल नेत्रवाळ, मंद नामवाळो हाथी विशेष होय छे ॥ २ ॥ 'गु' गाहा -कृश शरीरखाको अने कृश गरदन राळ, पातळी चामडी तथा नख, दांत अने पातळा केशवाळो, भीरु-ची कण (स्वभावथी त्रास पामेल), भवना कारणवशथी स्तब्ध--कानने स्थिर करवा विगेरे लक्षणयुक्त डरेलो, कष्टवाळो विहार चालवा विगेरेमां उगवाळो एवो, पोते त्रास पामेल अने बीजाने पण त्रास आपे छे ते त्रासी, मृग नामना भेदवाळो हाथी होय छे ॥ ३ ॥ चोथी अने पांचमी गाथा सुगम छे. तथा
हइ भद्दो, मंदो हत्थेण आहणइ हत्थी । गत्ताधरेहि य मिओ, संकिन्नो सव्यओ हणइ ॥७७॥ भद्र जातिनो हाथी के दांतवडे हणे छे, मंद जातिनो हाथी ढूंढवडे हणे छे, मृग जातिनो हाथी शरीर अने होठथी हणे छे
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir