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नाङ्गास्त्र सानुवाद
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जातिथी संकीर्ण पण मंद मनवाळो छे, कोईएक जातिथी संकीर्ण पण मृग( भारु) मनवाळो छ तेमज कोई एक हाथी जातिथी संकीर्ण अने संकीर्ण मनवाळो छे. मधनी गुटिका जेवी पिंगल-कईक राती अने कईक पीळी आंखोवाळो, योग्य काळे उत्पन्न थयेलो, लांबा पूंछडावाळो, आगळनो भाग-मस्तकनो भाग ऊंचो, धैर्यवालो अने प्रमाणोपेत सर्व अंगोपांगवाको भद्र जातिनो हाथी होय छे १, ढीली, जाडी अने विषम (लीलरी सहित) चामडविाळो, स्थूल मस्तकवाळो, स्थूल पूंछडाना मुलबाळो, स्थूल नख, दांत तथा वाळवाळो अने सिंहना जेवा पिंगल नेत्रवाळो मंद जातिनो हाथी होय छे २, कृश शरीर अने कृश (पातळी) ग्रीवावालो, कृश चामडी, कृश नख, दांत अने वाळवालो, भीरु, त्रास पामेलो, खेदवाळो, बीजाने त्रास उत्पन्न करनार मृग नामनो हाथी कहेवाय छे ३, आ उपर्युक्त त्रण जातिना हाथीना गुणोनुं रूपवडे अने स्वभाववडे थोडुं थोडं अनुसरण करनार ते संकर्णि जातिनो हाथी जाणवो ४. भद्र जातिना हाथीनो मद शरद् ऋतुमा झरे छे, मंद जातिना हाथीनो मद वसंत ऋतुमा झरे छ, मृग जातिना हाथीनो मद हेमंतऋतुमा झरे छे अने संकीर्ण जातिना हाथीनो मद हए ऋतुमा झरे छे. ५ (सू० २८१)
टीकार्थः-आ सूत्रो गतार्थ छे. विशेष ए के-आर्य नव प्रकारना छे ते जणाववा माटे गाथा कहे छे के* खेत्ते जाई कुल कम्म, सिप्प भासाइ नाणचरणे या दंसणआरिय णवहा मिच्छा सगजवणखसमाइ ।७६॥
बे प्रकारना आर्य छ-१ ऋद्धिप्राप्त अने २ अऋद्धिप्राप्त. ऋद्धिप्राप्त छ प्रकारना छे-१ तीर्थकर, २ चक्रवर्ती, ३ बलदेव, ४ ॐ वासुदेव, ५ चारणमुनि अने ६ विद्याधर. अऋध्धिप्राप्त आर्य नव प्रकारना छे-१ आर्यक्षेत्रमा उत्पन्न ते क्षेत्रार्य, २ जातिआर्य
४ स्थानकाध्ययने उद्देशा २ आर्यादिप्रकाराः वृषभहस्तिदृष्टान्ताः सू०२८०
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