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. श्रीराम परिवार सहित आकाश मार्ग से विमानों में बैठकर अयोध्या लौट रहे थे।
प्रातः काल का समय होने आया था। अभी सूर्य रश्मियां पृथ्वी को चूमने नहीं आई थी। फिर भी विहग वृन्द की सुरावलियों से आकाशमंडल गूजित हो उठा था।
श्रीराम की दृष्टि पृथ्वी के रमणीय प्रदेश पर थी। वे प्रकृति के सौन्दर्य का पान कर रहे थे । यकायक उनकी दृष्टि में कल-कल कलकल बहती नदो दिखाई दी । नदियां तो श्रीराम ने अनेक देखी थीं किंतु यह नदी आश्चर्य पैदा करने वाली थी। इस नदी का जल नीला तथा स्वच्छ था। श्रीराम ने सेवक से पूछा
"यह कौन सा प्रदेश है . ? और इस नदी का नाम क्या है?"
सेवक ने कहा: "स्वामिन् ...! यह प्रदेश मालवदेश के नाम से जाना जाता है । इस नदी का नाम क्षिप्रा नदी है । इस नदी के सुरम्य तट पर उज्जयिनी नगरी बसी हुई है।" ____ "विमान नीचे उतारो....!" श्रीराम ने आदेश दिया।
क्षणभर पहले का प्रशान्त नदी तट श्रीराम के परिवारजनों से धमधमा उठा । सभी विमान नीचे उतर गये। चारों ओर प्रातः के आगमन से नदी का तट कोलाहलमय हो गया। - सूर्योदय हो चुका था । महादेवो सीताजी ने स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण किये एवं क्षिप्रानदी के तट पर रत्नमय सिंहासन स्थापन किया । पुष्पक विमान से परमात्मा श्री ऋषभदेवजी की प्रतिमा उतारकर सिंहासन पर विराजमान की। श्रीराम लक्ष्मणजी और सीताजी ने अनेक विद्याधरों के साथ भगवान श्री ऋषभदेव स्वामी की अष्टप्रकारी पूजा की। परमात्मा की भक्ति से प्रसन्नचित होकर आगे के लिये प्रयाण की तैयारी की गई।
सीताजी ने ऋषभदेव स्वामी की प्रतिमा को उठाकर विमान में विराजमान करना चाहा किंतु प्रतिमाजी के अधिष्ठायक देवों को यह मंजूर नहीं था कि प्रतिमाजी अयोध्या जावे। अतः प्रतिमाजी अपने स्थान से चलित नहीं हुई। ... अनेकों विद्याधरों ने प्रतिमाजी को उठाने का व्यर्थ प्रयास किया अन्त में अधिष्ठायक देवों ने कहा
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