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श्रीपालचरितम् ॥८१॥
अर्थ-तदनंतर धवल सेठ संतुष्टमान होके कुमरकी सभा में बहुत हास्य सहित रमणीक क्रीडा करे अर्थात् वैसा हास्य | भाषाटीकाकरे जिससे श्रीपाल कुमरभी थोड़ा हसे ॥ ६३१॥
सहितम्. अन्नदिणे सो उच्चे, मंचे धवलो सयंसमारूढो । सिरिपालं पइ जंपइ, पिच्छह पिच्छह किमेयंति ६३२ | अर्थ-अन्यदिनमें धवल सेठ आप ऊंचे मंचपर चढा हुआ श्रीपाल कुमरसे ऐसा कहे कि भो कुमार आप देखो ६ २ कैसा आज आश्चर्य है पाणी दौड़ता है समुद्रमें बहुत आश्चर्य दीखता है ॥ ६३२॥ दीसइ समुद्दमज्झे, अदिट्ठपुर्व मइत्ति जंपंतो। उत्तरइ सयं तत्तो, कहेइ कुमरस्स सविसेसं ॥ ६३३॥ ___ अर्थ-मैंने पहिले ऐसा कभी नहीं देखा है वाहनसे मुसाफिरी करते बहुत वर्ष होगए हैं परंतु आज समुद्र में अपूर्व आश्चर्य है ऐसा बोलता हुआ मांचे से उतरे और विशेष करके कुमरसे कहे ॥ ६३३ ॥ कुमर अपुवं कोऊहलंति, तुज्झवि पलोयणसरिच्छं। जंजीवियाउबहुअं, दिदं पवरं भणइ लोओ ६३४ ___ अर्थ क्या कहें सो कहते हैं हे कुमार अपूर्व कुतूहल आज है इसलिए तुम्हारेभी देखने योग्य है जिस कारणसे लोग जीनेका फल बहुत देखनाही प्रधान कहते हैं ॥ ६३४॥ तो सहसा कुमारोऽवि हु,चडिओ जा तत्थ उच्चए मंचे।ता मंचदोरच्छेओ, विहिओय कुमंतिणा तेण ६३५ ।
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