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किंतु विसेसेण तुम, सिरिपालेणं समं कुणसु मित्तिं । जं सो वीसत्थमणो, अम्हाणं सुहहओ होई ६२७/ | अर्थ-किंतु तुम विशेष करके श्रीपालके साथ मैत्री करो जिससे विश्वासयुक्तमनजिसका ऐसा श्रीपाल सुखसे मारा 3॥
जायगा ॥ ६२७॥
तो धवलो तुमणो, भणेइ तुम चेव मज्झवरमित्तो। किंतु मह बंछियाणं सिद्धी होही कहं कहसु ६२८ PI अर्थ-तदनंतर धवल संतोषमान होके कहे ते ही मेरा प्रधान मित्र है किंतु मेरे वांछितकी सिद्धि कैसे होगी सो तें कह ॥ ६२८ ॥
सो आह जुज्झणत्थं, दोराधारेण मंडिए मंचे। कह कहवितं चडाविय, केणवि कोऊहलमिसेण ६२९ है अर्थ-वह कुमित्र बोला डोरोंके आधारसे युद्धादि करनेके लिए मंचा बांधेगे कोई प्रकारसे कोई कौतुकके
छलसे श्रीपालको उस मांचेपर चढ़ाके ।। ६२९ ॥ दछन्नं चिय छिन्ने दोरयंमि, सोनिच्छयं समुइंमि। पडिही तो तुह बंच्छिय,-सिद्धी होही निरखवायं ६३० ___ अर्थ-प्रच्छन्नही डोरा काटनेसे श्रीपाल निश्चयसे समुद्रमें पड़ेगा तदनंतर निरपवाद जैसे बने वैसा तुम्हारे वांछितकी सिद्धी होजायगी लोकोंमें अपवाद निंदाभी नहीं पाओगे ॥ ६३०॥ तो संतुट्ठो धवलो, कुमरसहाए करेइ केलीओ। बहुहासपेसलाओ, तहा जहा हसइ कुमरोवि ॥६३१/81
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