________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
CORROSA SANAAAX
___ अर्थ-तदनंतर कुमरभी धवलकी प्रेरणासे अकस्मात् जितने उस ऊंचे मांचेपर चढ़ा उतने उस कुमित्रने मंचेका टू डोरा काट दिया ॥ ६३५ ॥ है तो सहसा मंचाओ, कुमरोवि पडतओ नवपयाई। झाएइ तक्खणं चिय, पडिओमगरस्स पुट्टीए ॥६३६॥ I अर्थ-उसके अनन्तर अकस्मात् शीघ्र मांचेसे पड़ता हुआ कुमरभी नवपदोंका ध्यानकरे उस ध्यानके प्रभावसे || तत् कालही मकर महामत्स विशेषकी पीठपर पड़ा ॥ ६३६ ॥ नवपयमाहप्पेणं, ओसहियवलेण मगरपुट्टि ठिओ, खणमित्तेणवि कुमरो, सुहेण कुंकुणतडे पत्तो ६३७ __ अर्थ-तदनंतर नवपदोंके महात्म्यसे और औषधिके प्रभावसे मगरमच्छकी पीठपर रहा हुआ कुमर क्षणमात्रमें सुखसे कुकणदेशके तटमें प्राप्त भया ॥ ६३७॥ तत्थ य वर्णमि कत्थवि, चंपयतरुवरतलंमि सो सुत्तो, जा जग्गइ तो पिच्छइ, सेवापर सुहड परिवेढं ६३८ ___ अर्थ-वहां कुंकण तटके किनारे प्रधान चंपक वृक्षके नीचे श्रीपाल सोता निद्रा आई वाद जितने जगे उतने सेदावा करनेमें तत्पर ऐसे सुभटोंसे अपना आत्मा वीटा हुआ देखे ॥ ६३८॥ है विणओणएहिं तेहिं, भडेहिं पंजलिउडेहिं, विन्नत्तं । देव? इह कुंकुणक्खे, देसे ठाणाभिहाणपुरे ६३९/है।
APASAT38424344
For Private and Personal Use Only