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श्रीपाल- चरितम्
॥७४॥
राया पुच्छइ भयवं, को सिरिपालत्ति तो मुणिंदोवि, करसन्नाए दंसइ, एसोतुह पासमासीणो ५७४ भाषाटीका___ अर्थ-तब राजा पूछे हे भगवान कौन श्रीपाल तव मुनिवरिंद हाथकी संज्ञासे दिखावे यह तुम्हारे पासमें बैठा
सहितम्. हुआ श्रीपाल है ॥ ५७४ ॥ तं नाऊणं राया, सपमोओ विन्नवेइ मुणिरायं, भयवं? करेह पयर्ड, एयस्स सरूवमम्हाणं ॥५७५॥ ___ अर्थ-राजा उनको श्रीपाल जानके हर्षसहित मुनिराजसे वीनंती करे हे भगवन् इन्होंका स्वरूप हमारे आगे प्रगट करो ॥ ५७५॥ तत्तो चारणसमणेण, तेण आमूलचूलमेयस्स । कहियं ताव चरित्तं, जिणभुवणुग्घाडणं जाव ॥५७६॥
अर्थ-वाद चारण श्रमणने श्रीपाल कुमरका सर्व चरित जिनमंदिर उघाडा वहां तक कहा ॥ ५७६ ॥ है इत्तोवि परं एसो, परिणिंतोणेगरायकन्नाओ। पियरज्जे उवविट्ठो, होही रायाहिराओत्ति ॥ ५७७ ॥ ___ अर्थ-तिसके अनंतरभी यह श्रीपाल कुमर अनेक राजकन्याओंका पाणिग्रहण करके पिताके राज्यमें बैठा भया राजाधिराज होगा अर्थात् राजालोगोंमें बडा राजा होगा ॥ ५७७ ॥
॥७४।। तत्थ सिरिसिद्धचक्कं, विहिणा आराहिऊण भत्तीए । पाविस्सइ सग्गसुहं, कमेण अपवग्गसुक्खं च ५७८३
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