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RECRUSALARIA
अर्थ-अहो भव्यो शोभन संवर है जिसमें तथा मोहका निरोधही है श्रेष्ठ जिसमें ऐसा और सामायकादि पांचलाभेद है जिसका और गया अतिचार जिससे ऐसा और मूलउत्तररूप अनेकगुण हैं जिसमें मूलगुण प्राणातिपात विरमउणादिक चरणसत्तरी और उत्तर गुण पिंडविशुद्ध्यादि करणसत्तरी इन्हो करके पवित्र ऐसा सत्चारित्र निरंतर तुम पालों ॥ ५७१॥
बज्झं तहाभिंतरभेयमेयं, कयाइदुब्भेयकुकम्मभेयं,
दुक्खक्खयत्थं कयपावनासं, तवं तवेहागमयं निरासं ॥ ५७२ ॥ अर्थ-अहो भन्यो तुम यह बाह्य अभ्यंतर भेद है जिसका ऐसा तप तपो कैसा है तप अतिशय दुर्भेद कुकर्मोंका |विदारण किया जिन्होने ऐसा इसी कारणसे किया है पापका नाश जिसने और कैसा तप गई आशा जिससे ऐसा | तपकरो दुःख क्षय करनेकेवास्ते ॥ ५७२॥
एयाइं जे केवि नवप्पयाई, आराहणंतिट्रफलप्पयाइं।
लहंति ते सुक्खपरंपराणं, सिरिं सिरीपालनरेसरुव ॥ ५७३ ॥ अर्थ-जे कोई जीव यह वांछित फल देनेवाले ऐसे नवपदोंकी आराधना करे वह श्रीपाल राजाके जैसी सुखकी परंपरा और लक्ष्मी पावे ॥ ५७३ ॥
सम्बपरंपरार्थ सिरि सिरीपालनरेसका २७ राजा की सरकार
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