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अर्थ — उस महाराज अवस्थामें श्रीसिद्धचक्रका विधिसे आराधन करके देवलोकका सुख पावेगा क्रमसे मोक्षसुख पावेगा ॥ ५७८ ॥
तत्तो एस महप्पा, महत्पभावो महायसो धन्नो । कयपुन्नो महभागो, संजाओ नवपयपसाया ॥ ५७९ ॥
अर्थ-तिसकारणसे यह महात्मा महाप्रभावजिसका और महायश जिसका ऐसा धन्य और किया हे पुन्य जिसने ऐसा कृतपुण्य महाभाग्य जिसका ऐसा महाभाग नवपदोंके प्रसादसे भया ॥ ५७९ ॥
जो कोइ महापावो, एयस्सुवरिंपि किंपि पडिकूलं । करिही सच्चिय लहिही, तक्कालं चैव तस्स फलं ५८०
अर्थ- जो कोई महापापी पुरुष श्रीपालकुमरके ऊपर कुछभी प्रतिकूल विरुद्धकरेगा उसका फल वह करनेवाला तत्काल पावेगा ॥ ५८० ॥
एयस्स सिद्धसिरी सिद्धचक्क, - नवपयपसायपत्तस्स । धुवमावयावि होही, गुरुसंपयकारणं चेव ॥ ५८१ ॥
अर्थ - सिद्ध याने निष्पन्न श्रीसिद्धचक्र उसमें जो नवपद उन्होंका जो प्रसाद पात्र ऐसा यह श्रीपाल इसके निश्चय आपदाभी बहुत सम्पदाकी कारण होगी ॥ ५८१ ॥
एवं चैव कहतो, संपत्तो मुणिवरो गयणमग्गे । लोओ अ सप्पमोओ, जाओ नरनाहपामुक्खो ॥ ५८२ ॥ अर्थ — इस प्रकारसे कहता हुवा मुनिवरिन्द्र आकाश मार्गसे अन्यत्र गए राजादिक लोक आनंद सहित भए ॥ ५८२ ॥
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