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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org षष्ठिशतक-181 लेण जाउसि ॥ ६॥ मुणिऊण सामिवयणं चिंतइ सो पन्नगो समुवसंतो । किर कोसिगुत्ति नामं निसुयं मे कत्थ वि OM पुरा वि ॥ ६८ ॥ इय ऊहापोहेणं समग्गणगवेसणं करेमाणो | संजाइजाइसरणो खबगाईए भवे पासे ॥ ५९॥ चिंतेइ ॥१९॥ सटीक० य सो पुणरवि हीही कोहो कउमए पुन्धि । ता एयायिरिसवत्यो जाओ लडुपि जिणवोहिं ॥७०॥ संपइ पुण भुवणगुरु-बहुसो आसाइओ मए मोहा । तो नूणं भमियव्वं भवाडवीए मए बहुहा ।। ७१ ।। ता मुत्तूण कसाए पिसाय इव भीमभयकरे इन्हि । एयरस समक्खं चिय पपडिवजेउ चिय धम्ममहं ॥ ७२ ॥ खामेमि सामि सालं एवं करुणापरं महासत्तं । जो म पडिबोहे नियपीडमुविक्खिऊण ठिओ ॥ ७३ ।। इय वेरम्गसमेओ परमं भत्तिं च हिययमज्झम्मि । सामि उवरि वहतो करेइ तिपयाहिणं वीरं ॥ ७४ ॥ वंदिय वीरजिणंदं भत्तीए तस्स चेव पञ्चक्खं । अंगीकयसम्मत्तो पच्चक्खइ चउविहाहारं ॥ ७५ ॥ जाणंति चउनाणजुओ तित्थगरो सब्वमेव तब्भावं । न हु किंपि अपच्चक्खं जयम्मि जं परमजोगीण ॥७६ ॥ मा हं रुट्ठो संतो दिडीए जणवहं करैमित्ति । तुडं बिलम्मि ठाविय ठिो समाहीए सो सप्पो ॥७७॥ सामी तत्येव ठिो तस्सणुकंपाए परमकारुणिउं । गरुयाण सहावुन्नि(विच)य जं परकजेमु वहति ॥७८||गोवालवच्छवाला सामि दट्टण तत्थ पडिमठियं । तम्मि वणे, अल्लीणा-रुक्खेहि आवरियअंग ॥ ७९॥ तस्स उरगस्स दूरा खिवंति पाहाण एय ते गोवा । तहवि हु सो न वि चलेई जाणतो कोहमाहप्पं ।। ८० ॥ तो ते आस चिय आगंतुं तं भुयंगम तत्थ । दंडेहिं घति य तहविहु न फुरइ मणागपि ॥८१॥ तो तेहिं गंतूगं सिटुं लोगस्स इइ जहा भुयगो । सो उपसंतो सामि दट्टणं दुकम्मो चि ॥ ८२ ।। तं सुणिऊण लोगो परमं अत्थेरयं निययचिते । धारिं- १९ ॥ RECAUSAMOST AAA% For Private and Personal Use Only
SR No.020698
Book TitleShashti Shatak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay
PublisherSatyavijay Jain Granthmala
Publication Year1924
Total Pages282
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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