SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org वह दिट्ठीविसेण तेण तओ । अन्ने त भयभीया णट्टा य दिसोदिसं खिप्यं ॥ ५३ ॥ सो य तिसंज्झ तम्मि उ वणखंडे भइ रक्खणनिमित्तं । जं सउण गमवि पासइ त डहर सकोहणो सहसा || ५४ || वाहे दिट्टो सामी परिब्भमंतेण तेण तत्थ डिओ ॥ वीरो धीरसरीरो मंदरचूलोव्ब निक्कंपो ॥ ५५ ॥ तं दण स जलिओ अहिययरं कोहकूरजळणेण । चिते इमं न याण जं एसडिओ इहं एवं ॥ ५६ ॥ इय चिंतिय दिणनाहं निज्झाइत्ता पलोयए सामि । कोवेण ड हे दिट्ठीए विसरजुयाए ॥ ५७ ॥ उज्झति जहा अन्ने तद्दिट्ठीए तहाण डज्झइय । सामी किं मुहुय हुया समि डज्झेइवज्जं पि ॥ ५८ ॥ तो पुणरवि निज्झायर वाराओ दुन्नि तिन्नि वा जाब । तय वत्थं चिय पासइ तह विहु परमेसरं वीरं ॥ ५९ ॥ वा आगंतुं को वा डसइ स चरणमि निठुरो घणियं । मा मे उवरिं पडिहित्ति डसिय दूरं च उरई ॥ ६० ॥ तह वि हु तयवच्छे चिय दट्टू डसइ पुण वि सो दुट्ठो । दो तिन्निव वाराओ जाव न मुच्छा वि से जाया ॥ ६१ ॥ तो पुण वि अमरिसेणं सो भुयगो अच्छ (च्छि ) ए पलोऐतो | अहवा दुट्ठा विरति नेव पात्राउ कइया वि ॥ ६२ ॥ पिच्छतस्स उ तस्स उ रूवं सामिस्स वज्रमाणस्स । असंत अइकंत संपुन्नं अमयकुंव्व ॥ ६३ ॥ विसभरिया वि हु दिट्ठी विज्झाया ज्झत्तिसामि सोमत्ता । घोरो विव वो जह विज्झाय मेहबुद्धीए ॥ ६४ ॥ अहव बहुमरणकारण कसायविसुवसमहेउणो जस्स । आलोयणेण जइ बझ विसुवसमो तोणु किं वुज्जं ॥ ६५ ॥ नाऊण तं अविरयं तेणं पावेण कुगइगमणरिहं । तप्पडिबोहनिमित्तं तो भवणगुरू भणइ एवं ॥ ६६ ॥ उवसम चंडकोसिग बुज्झ तत्तं भवंमि मा मुज्झ । सरसु निययपुण्यभवं जह कोहफ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020698
Book TitleShashti Shatak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay
PublisherSatyavijay Jain Granthmala
Publication Year1924
Total Pages282
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy