SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्थानाङ्गसूत्र सावुवाद ॥४२॥ XXXE XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX-* लांबु, हस्व-तेनाथी नानु, वृत्तादिक पांच स्कंधना संस्थान(आकार)ना भेद छे. तेमां वृत्त संस्थान मोदक जे छ, ते प्रतर ||१ स्थानाअने घन भेदथी ये प्रकारे छे. वळी ते प्रत्येक (प्रतर-घन)समविषम प्रदेशना अवगाढरूप भेदी चार प्रकारे छे. वीजा III ध्ययन संस्थानो पण एवी रीते जाणवा. तसे'त्ति त्रण छे कोटि (हांस) जेमां ते व्यंस्र (त्रिकोण) छे. चार छ हांसो जेने ते चतुरस्र- 18 अजीवधर्माः चोखूणो छे. तथा 'पिहुल'त्ति पृथुल-विस्तीर्ण. वळी बीजे स्थले पृथुलने ठेकाणे 'आयत' कहेवाय छे ते आयतसंस्थान, ४७ सूत्रम् अहिं दीर्घ, इस्त्र अने पृथुल शब्दवडे विभाग करीने कहेलुं छे, कारण के दीर्घ वगेरे आयत धर्मयविशिष्ट छे. ते आयत, प्रतर-धन-श्रेणि भेदथी त्रण प्रकारे छे. वळी ते प्रत्येक, सम-विषम प्रदेशरूपथी छ प्रकारना छे. जे आयतना के भेद दीर्घ अने इस्व तेनुं कथन शरूआतमां कहेल छे ते वृत्त वगेरे संस्थानोमां आयतनी प्रायः वृत्ति देखाडवा माटे कहेल छे. ते आ प्रमाणे:-दीर्घायत घणो लांबो स्तंभ (थांभलो) गोळ त्रिकोण अने चतुष्कोण छे इत्यादि भावयु, अथवा सूत्रनी गति विचित्र होवाथी आवी रीते उपन्यास करेल छे. 'परिमंडले'त्ति परिमंडल संस्थान वलय(चूडी) आकारे, ते प्रतर-घनभेदथी ये प्रकारे छे. रूपनो भेद ते वर्ण, ते कृष्ण वगेरे पांच प्रकारे स्पष्ट छे; परंतु हारिद्र-पीळो, कपीश-धूसर वगेरे वर्णना संसर्ग(एक बीजाना संबंध)थी थाय छे, माटे तेओनो उपन्यास करेल नथी. गंध सुगम अने दुरभिगंध एम बे प्रकारे छे. जे सन्मुख करे ते सुगंध अने जे विमुख करे ते दुर्गध. साधारण परिणाम अस्पष्ट होवाथी दुगह-दुःखे ग्रहण करी शकाय तेवा संसर्गवडे थवाथी कहेल नथी. रस पांच प्रकारे छे. तेमां श्लेष्म-कफनो नाश करनार ते तीखो रस, वैशद्य-शरदीने जे दूर करनार ते कटुक रस, अन्ननी रुचिने जे बंध करनार ते कषाय रस, सांभळवाथी मोढाने जे पीगळावनार ते खाटो रस, आनंद अने पुष्टिने जे करनार ते मधुर रस. संसर्गथी उत्पन्न थनार लवण रस ४२।। KXXXX XXXXXXXXXXXX For Private and Personal use only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy